NCERT Class 10th Sanskrit Chapter 2
द्वितीयः पाठः
बुद्धिर्बलवती सदा (बुद्धि सदा बलवती होती है)
शुकसप्ततिः
पाठ का परिचय- प्रस्तुत पाठ ‘शुकसप्ततिः’ नामक प्रसिद्ध कथाग्रन्थ से सम्पादित करके संकलित किया गया है इसमें अपने दो छोटे-छोटे पुत्रों के साथ जंगल के रास्ते से पिता के घर जा रही बुद्धिमती नामक महिला के बुद्धिकौशल को दिखाया गया है जो सामने आए हुए शेर को भी डरा कर भगा देती है यह कथा नीतिनिपुण शुक और सारिका की कथा के द्वारा सद्वृत्ति का विकास करने के लिए प्रेरित करती है |
(1)
अस्ति देउलाख्यो ग्रामः तत्र राजसिंहः नाम राजपुत्रः वसति स्म एकदा केनापि आवश्यककार्येण तस्य भार्या बुद्धिमती पुत्रद्वयोपेता पितुर्गृहं प्रति चलिता मार्गे गहनकानने सा एकं व्याघ्रं ददर्श सा व्याघ्रमागच्छन्तं दृष्ट्वा धाष्ट्यांत पुत्रौ चपेटया प्रहृत्य जगाद- “कथमेकैकशो व्याघ्रभक्षणाय कलहं कुरुथ: ? अयमेकस्तावद्विभज्य भुज्यताम् पश्चाद् अन्यो द्वितीयः कश्चिल्लक्ष्यते”
कठिन शब्दार्थ- देउलाख्यः = देउल नामक (देउल इत्यभिधः) राजपुत्रः = राजकुमार (राजकुमारः) भार्या = पत्नी (जाया) पुत्रद्वयोपेता = दोनों पुत्रों के साथ (द्वाभ्याम् आत्मजाभ्यां सहिता) पितृर्गृहम् = पिता के घर (पितृगृहं प्रति) चलिता = चल पड़ी (प्रस्थिता) कानने = जंगल में (वने) । ददर्श = देखा (अपश्यत्) । व्याघ्रम् = बाघ को (शार्दूलम्) आगच्छन्तं = आता हुआ (आयान्तम्) दृष्ट्वा = देखकर (अवलोक्य) । धाष्ट्रर्यात् = ढिठाई से, धृष्टता से (धृष्टतापूर्वकम्) । चपेटया = थप्पड़ से (करप्रहारेण) । प्रहृत्य = प्रहार करके, थप्पड़ मारकर (प्रहारं कृत्वा) । जगाद = कहा (उक्तवती) । एकैकशः = एक-एक (एकम् एकम्) । भक्षणाय = खाने के लिए (खादितुम्) । कलहम् = झगड़ा (विवादम्) । विभज्य = बाँटकर, अलग-अलग करके (विभक्तं कृत्वा) । भुज्यताम् = खाइए (खाद्यताम्) । पश्चाद् = इसके बाद (तदनन्तरम्) । लक्ष्यते = देखा जाएगा (दृश्यते) ।
प्रसंग- प्रस्तुत गद्यांश/कथांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘बुद्धिर्बलवती सदा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है मूलत: इस पाठ में वर्णित कथा ‘शुकसप्ततिः’ नामक कथाग्रन्थ से संकलित है इस अंश में बुद्धिमती नामक महिला के अपने दो पुत्रों के साथ अपने पिता के घर (पीहर) की ओर जाने का तथा रास्ते में एक शेर को आता हुआ देखकर बुद्धिमती की चतुराई का वर्णन किया गया है ।
हिन्दी अनुवाद- देउल नामक एक गाँव था । वहाँ राजसिंह नामक राजकुमार रहता था । एक बार किसी आवश्यक कार्य से उसकी पत्नी बुद्धिमती अपने दोनों पुत्रों के साथ पिता के घर (पीहर) की ओर जा रही थी । रास्ते में गहन जंगल में उसने एक शेर को देखा । वह शेर को आता हुआ देखकर धृष्टता से दोनों पुत्रों के थप्पड़ मारकर बोली- “क्यों एक-एक शेर को खाने के लिए झगड़ा कर रहे हो ? यह एक ही है, इसे बाँटकर खा लेना । बाद में अन्य कोई दूसरा देखा (ढूंढ़ा) जाएगा ।”
(2)
इति श्रुत्वा व्याघ्रमारी काचिदियमिति मत्वा व्याघ्रो भयाकुलचित्तो नष्टः ।
निजबुद्ध्या विमुक्ता सा भयाद् व्याघ्रस्य भामिनी ।
अन्योऽपि बुद्धिमाँल्लोके मुच्यते महतो भयात् ॥
भयाकुलं व्याघ्रं दृष्ट्वा कश्चित् धूर्तः शृगालः हसन्नाह – “भवान् कुतः भयात् पलायित: ?”
व्याघ्रः-गच्छ, गच्छ जम्बुक! त्वमपि किञ्चिद् गूढप्रदेशम् । यतो व्याघ्रमारीति या शास्त्रे श्रूयते तयाहं हन्तुमारब्धः परं गृहीतकरजीवितो नष्टः शीघ्रं तदग्रतः ।
शृगालः व्याघ्र! त्वया महत्कौतुकम् आवेदितं यन्मानुषादपि विभेषि ?
व्याघ्रः प्रत्यक्षमेव मया सात्मपुत्रावेकैकशो मामत्तुं कलहायमानौ चपेटया प्रहरन्ती दृष्टा ।
कठिन शब्दार्थ- श्रुत्वा = सुनकर (आकर्ण्य) । व्याघ्रमारी = बाघ को मारने वाली (शार्दूल-हन्त्री) । मत्वा = मानकर (निश्चित्य) । भयाकुलचित्तो = भय से व्याकुल मन वाला, भयभीत (व्याकुलहृदयः) । नष्टः = भाग गया (पलायितः) । निजबुद्ध्या = अपनी बुद्धि से (आत्मनः प्रज्ञया) । भामिनी = रूपवती स्त्री (रूपवती स्त्री) । लोके = संसार में (संसारे) । मुच्यते = मुक्त हो जाता है (त्यज्यते) । शृगालः = सियार (जम्बुक:) । आह = कहा (अकथयत्) । श्रूयते = सुना जाता है (आकर्ण्यते) । कुतः = कहाँ से (कस्मात्) । जम्बुक: = सियार (शृगालः) । गूढप्रदेशम् = गुप्त प्रदेश में (गुप्तस्थाने) । श्रूयते = सुना जाता है (आकर्ण्यते) । हन्तुम् = मारने के लिए (मारयितुम्) । गृहीतकरजीवित: = हथेली पर प्राण लेकर (हस्ते प्राणान् नीत्वा) । अग्रतः = सामने से (सम्मुखात्) । महत्कौतुकम् = महान् आश्चर्य से (अत्यधिकम् आश्चर्यकरम्) । आवेदितम् = बताया है (विज्ञापितम्) । मानुषादपि = मनुष्य से भी (मानवादपि) । बिभेषि = डरते हो (भयाक्रान्तोऽसि) । प्रत्यक्षम् = सामने (सम्मुखम्) । सात्मपुत्रावेकैकशः = वह अपने दोनों पुत्रों को एक-एक करके (स्वात्मजौ एकैकं कृत्वा) । अत्तुम् = खाने के लिए (खादयितुम्) । कलहायमानौ = झगड़ा करते हुए दोनों को (कलहं कुर्वन्तौ) । प्रहरन्ती = मारती हुई, प्रहार करती हुई (प्रहारं कुर्वन्तीम्) । दृष्टा = देखी गई (अवलोकिता) ।
श्लोक का अन्वय- सा भामिनी निजबुद्ध्या व्याघ्रस्य भयाद् विमुक्ता । लोके अन्यः बुद्धिमान् अपि महतः भयात् मुच्यते ।
प्रसंग- प्रस्तुत कथांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘शेमुषी द्वितीयो भागः’ के ‘बुद्धिर्बलवती सदा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है । मूलतः यह पाठ ‘शुकसप्ततिः’ नामक सुप्रसिद्ध कथाग्रन्य से संकलित किया गया है । इस अंश में बुद्धिमती नामक महिला के बुद्धि-कौशल की प्रशंसा करते हुए बाघ रूपी महान् भय से उसके मुक्त होने का वर्णन हुआ है ।
हिन्दी अनुवाद- यह सुनकर यह कोई बाघ को मारने वाली स्त्री है, ऐसा मानकर बाघ भयभीत होकर भाग गया । यह रूपवती स्त्री अपनी बुद्धि से बाघ के भय से मुक्त हो गई । संसार में अन्य बुद्धिमान् भी महान् भय से मुक्त हो जाता है ।
भय से व्याकुल बाघ को देखकर कोई धूर्त सियार हँसता हुआ बोला- “आप किस भय से भाग रहे हो ?”
बाघ- जाओ, सियार! तुम भी किसी गुप्त प्रदेश में चले जाओ । क्योंकि ‘ बाघ को मारने वाली स्त्री’ ऐसा जो शास्त्र में सुना जाता है । वह मुझे मारने ही वाली थी किन्तु प्राण हथेली पर रखकर उसके सामने से मैं शीघ्र भाग आया हूँ ।
सियार- हे बाघ! तुमने महान् आश्चर्य की बात बतलाई है कि तुम मनुष्य से भी डरते हो ?
बाघ- मेरे द्वारा अपने सामने ही उसे अपने दोनों पुत्रों को एक-एक करके मुझे खाने के लिए झगड़ा करते हुओं को थप्पड़ मारते हुए देखा गया है ।

(3)
जम्बुक: – स्वामिन्! यत्रास्ते सा धूर्ता तत्र गम्यताम् । व्याघ्र! तव पुनः तत्र गतस्य सा सम्मुखमपीक्षते यदि, तर्हि त्वया अहं हन्तव्यः इति ।
व्याघ्रः – शृगाल! यदि त्वं मां मुक्त्वा यासि तदा वेलाप्यवेला स्यात् ।
जम्बुक: – यदि एवं तर्हि मां निजगले बद्ध्वा चल सत्वरम् । स व्याघ्रः तथा कृत्वा काननं ययौ । शृगालेन सहितं पुनरायान्तं व्याघ्रं दूरात् दृष्ट्वा बुद्धिमती चिन्तितवती – जम्बुककृतोत्साहाद् व्याघ्रात् कथं मुच्यताम् ? परं प्रत्युत्पन्नमतिः सा जम्बुकमाक्षिपन्त्यङ्गुल्या तर्जयन्त्युवाच-
रे रे धूर्त त्वया दत्तं मह्यं व्याघ्रत्रयं पुरा ।
विश्वास्याद्यैकमानीय कथं यासि वदाधुना ॥
इत्युक्त्वा धाविता तूर्णं व्याघ्रमारी भयङ्करा ।
व्याघ्रोऽपि सहसा नष्टः गलबद्धशृगालकः ॥
एवं प्रकारेण बुद्धिमती व्याघ्रजाद् भयात् पुनरपि मुक्ताऽभवत् । अत एव उच्यते-
बुद्धिर्बलवती तन्वि सर्वकार्येषु सर्वदा ।।
श्लोकयोः अन्वयः- रे रे धुर्त! त्वया मह्यं पुरा व्याघ्रत्रयं दत्तम् विश्वास्य (अपि) अद्य एकम् आनीय कथं यासि इति अधुना वद ॥
इति उक्त्वा भयङ्करा व्याघ्रमारी तूर्णं धाविता । गलबद्धशृगालकः व्याघ्रः अपि सहसा नष्टः ॥ हे तन्वि! सर्वदा सर्वकार्येषु बुद्धिर्बलवती ।
कठिन शब्दार्थ- यत्रास्ते = जहाँ है (यस्मिन् स्थाने स्थिता) । गतस्य = गये हुए के (प्राप्तस्य) । ईक्षते = देखती है (पश्यति) । हन्तव्यः = मार देना चाहिए (हननीयः) । मुक्त्वा = छोड़कर (परित्यज्य) । वेला = शर्त (समयः) । निजगले = अपने गले में (स्वकण्ठे) । बद्ध्वा = बाँधकर (संलग्नं कृत्वा) । सत्वरम् = शीघ्र (शीघ्रम्) । काननम् = जंगल में (वनम्) । ययौ = चला गया (गतवान्) । आयान्तम् = आते हुए को (आगच्छन्तम्) । आक्षिपन्ती = आक्षेप करती हुई, झिड़कती हुई, भर्त्सना करती हुई (आक्षेपं कुर्वन्ती) । तर्जयन्ती = धमकाती हुई, डाँटती हुई (प्रताडयन्ती) । उवाच = बोली (अवदत्) । पुरा = पहले (पूर्वे) । विश्वास्य = विश्वास दिलाकर (समाश्वास्य) । अद्य = आज (अधुना) । आनीय = लाकर (उपाहृत्य) । यासि = जा रहे हो (गच्छसि) । भयङ्करा = भयानकता दिखलाती हुई (भीषणा) । तूर्णम् = शीघ्र (शीघ्रम्) । धाविता = दौड़ी (अधावत्) । गलबद्धशृगालकः = गले में बंधे हुए शृगाल वाला (कण्ठे संलग्नशृगालयुक्तः) । तन्वि = कोमलाङ्गी (कोमलाङ्गि) ।
प्रसंग- प्रस्तुत कथांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘शेमुषी द्वितीयो भागः’ के ‘बुद्धिर्बलवती सदा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है । मूलतः यह पाठ ‘शुकसप्ततिः’ नामक कथाग्रन्थ से संकलित है इस अंश में धूर्त शृगाल एवं बाघ का वार्तालाप तथा बुद्धिमती नामक महिला के बुद्धि-कौशल का सुन्दर व प्रेरणास्पद चित्रण किया गया है । बुद्धिमती बाघ से उत्पन्न भय से फिर से मुक्त हो जाती है । वस्तुतः बुद्धि ही हमेशा बलवती होती है ।
हिन्दी अनुवाद-
सियार- हे स्वामी! जहाँ वह धूर्ता स्त्री है वहाँ जाइए । हे बाघ! तुम्हारे फिर से वहाँ गये हुए के सामने यदि वह स्त्री देख भी लेवे तो तुम मुझे मार देना ।
बाघ- हे सियार! यदि तुम मुझे छोड़कर चले जाओगे तो शर्त भी अशर्त (व्यर्थ) हो जायेगी । सियार- यदि ऐसा है तो मुझे अपने गले में बांधकर शीघ्र चलो ।
वह बाघ वैसा ही करके जंगल में चला गया । सियार के साथ फिर से आते हुए बाघ को दूर से ही देखकर बुद्धिमती ने सोचा- सियार द्वारा उत्साहित किये गये बाघ से किस प्रकार मुक्त हुआ जाये ? किन्तु प्रत्युत्पन्न बुद्धिवाली वह स्त्री सियार को झिड़कती हुई और अंगुली से धमकाती हुई बोली-
अरे, अरे धूर्त! तुमने मेरे लिए पहले तीन बाघ दिये थे । विश्वास दिलाकर भी आज एक ही बाघ लाकर कैसे जा रहे हो, अब बोलो । ऐसा कहकर वह भयानक व्याघ्रमारी (बाघ को मारने वाली) शीघ्र ही दौड़ी । गले में बँधे हुए सियार वाला बाघ भी अचानक भाग गया ।
इस प्रकार से वह बुद्धिमती स्त्री बाघ से उत्पन्न हुए भय से फिर से मुक्त हो गई । इसीलिए कहा गया है- हे कोमलाङ्गी! हमेशा सभी कार्यों में बुद्धि ही बलवती होती है ।
पाठ्यपुस्तकस्य प्रश्नोत्तराणि |
प्रश्न 1. एकपदेन उत्तरं लिखत-
(क) बुद्धिमती कुत्र व्याघ्रं ददर्श ?
(ख) भामिनी कया विमुक्ता ?
(ग) सर्वदा सर्वकार्येषु का बलवती ?
(घ) व्याघ्रः कस्मात् बिभेति ?
(ङ) प्रत्युत्पन्नमतिः बुद्धिमती किम् आक्षिपत्ती वाच ?
उत्तराणि-
(क) गहनकानने । | (ख) निजबुद्ध्या | (ग) बुद्धिः । | (घ) मानुपात् । | (ङ) जम्बुकम् |
प्रश्न 2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत – (अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए ।)
(क) बुद्धिमती केन उपेता पितुर्गृहं प्रति चलिता ? (बुद्धिमतो किसके साथ पिता के घर की और चल दी ?)
उत्तरम्- बुद्धिमती पुत्रद्वयोपेता पितुर्गृहं प्रति चलिता । (बुद्धिमतो दो पुत्रों के साथ पिता के घर की ओर चल दी ।)
(ख) व्याघ्रः किं विचार्य पलायितः ? (क्या सोचकर भाग गया ?)
उत्तरम्- व्याघ्रमारी काचिदियमिति विचार्य व्याघ्रः पलायितः । (‘यह कोई बाघ को मारने वाली है’-ऐसा सोचकर बाघ भाग गया ।)
(ग) लोके महतो भयात् कः मुच्यते ? (संसार में महान् भय से कौन मुक्त हो जाता है ? )
उत्तरम्- लोके महतो भयात् बुद्धिमान् मुच्यते । (संसार में महान् भय से बुद्धिमान् मुक्त हो जाता है ।)
(घ) जम्बुकः किं वदन् व्याघ्रस्य उपहासं करोति ? (गीदड़ क्या कहकर बाघ का उपहास करता है ?)
उत्तरम्- “त्वम् मानुषादपि विभेषि ?” इति वदन् जम्बुकः व्याघ्रस्य उपहासं करोति । (“तुम मनुष्य से भी डरते हो”- यह कहकर गीदड़ बाघ का उपहास करता है ।)
(ङ) बुद्धिमती शृगालं किम् उक्तवती ? (बुद्धिमती ने सियार से क्या कहा ?)
उत्तरम्- “रे धूर्त! त्वया मह्यं पुरा व्याघ्रत्रयं दत्तम् । विश्वास्याद्यैकमनीय कथं यासि वदाधुना ।” इति बुद्धिमती शृगालम् उक्तवती । (“अर धूर्त्त! तुमने मुझे पहले तीन बाघ दिये थे । विश्वास दिलाकर अब एक (बाघ) ही लाकर कैसे जा रहे हो, अब बोलो’- ऐसा बुद्धिमती ने सियार से कहा ।)
प्रश्न 3. स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-
(क) तत्र राजसिंहो नाम राजपुत्रः वसति स्म ।
(ख) बुद्धिमती चपेटया पुत्र प्रहृतवती ।
(ग) व्याघ्रं दृष्ट्वा धूर्तः शृगालः अवदत् ।
(घ) त्वम् मानुषात् विभेषि ।
(ङ) पुरा त्वया मह्यं व्याघ्रत्रयं दत्तम् ।
उत्तरम्– प्रश्ननिर्माणम्-
(क) तत्र किम् नाम राजपुत्रः वसति स्म ?
(ख) बुद्धिमती कया पुत्रौ प्रहृतवती ?
(ग) कम् दृष्ट्वा धूर्तः शृगालं अवदत् ?
(घ) त्वम् कस्मात् विभेषि ?
(ङ) पुरा त्वया कस्मै व्याघ्रत्रयं दत्तम् ?
प्रश्न 4. अधोलिखितानि वाक्यानि घटनाक्रमानुसारेण योजयत-
(क) व्याघ्रः व्याघ्रमारी इयमिति मत्वा पलायितः ।
(ख) प्रत्युत्पन्नमतिः सा शृगालं आक्षिपन्ती उवाच ।
(ग) जम्बुककृतोत्साहः व्याघ्रः पुनः काननम् आगच्छत् ।
(घ) मार्गे सा एकं व्याघ्रम् अपश्यत् ।
(ङ) व्याघ्रं दृष्ट्वा सा पुत्रौ ताडयन्ती उवाच-अधुना एकमेव व्याघ्रं विभज्य भुज्यताम् ।
(च) बुद्धिमती पुत्रद्वयेन उपेता पितुर्गृहं प्रति चलिता ।
(छ) ‘त्वं व्याघ्रत्रयम् आनेतुं’ प्रतिज्ञाय एकमेव आनीतवान् ।
(ज) गलबद्धशृगालकः व्याघ्रः पुनः पलायितः ।
उत्तराणि-
(क) बुद्धिमती पुत्रद्वयेन उपेता पितुर्गृहं प्रति चलिता ।
(ख) मार्गे सा एकं व्याघ्रम् अपश्यत् ।
(ग) व्याघ्रं दृष्ट्वा सा पुत्रौ ताडयन्ती उवाच-अधुना एकमेव व्याघ्रं विभज्य भुज्यताम् ।
(घ) व्याघ्रः व्याघ्रमारी इयमिति मत्वा पलायितः ।
(ङ) जम्बुककृतोत्साहः व्याघ्रः पुनः काननम् आगच्छत् ।
(च) प्रत्युत्पन्नमतिः सा शृगालं आक्षिपन्ती उवाच ।
(छ) ‘त्वं व्याघ्रत्रयम् आनेतुं’ प्रतिज्ञाय एकमेव आनीतवान् ।
(ज) गलबद्धशृगालकः व्याघ्रः पुनः पलायितः ।
प्रश्न 5. सन्धि/सन्धिविच्छेदं वा कुरुत-
(क) पितुर्गृहम् | ……….+ ………. |
(ख) एकैकः | ……….+ ………. |
(ग) ……………….. | अन्य + अपि |
(घ) ……………….. | इति + उक्त्वा |
(ङ) ……………….. | यत्र + आस्ते |
उत्तरम्-
(क) पितुगृर्हम् | पितुः + गृर्हम् |
(ख) एकैक: | एक + एकः |
(ग) अन्योऽपि | अन्य + अपि |
(घ) इत्युक्त्वा | इति + उक्त्वा |
(ङ) यत्रास्ते | यत्र + आस्ते |
प्रश्न 6. अधोलिखितानां पदानाम् अर्थ: कोष्ठकात् चित्वा लिखत-
(क) ददर्श | (दर्शितवान्, दृष्टवान्) |
(ख) जगाद | (अकथयत्, अगच्छत्) |
(ग) ययौ | (याचितवान्, गतवान्) |
(घ) अत्तुम् | (खादितुम्, आविष्कर्तुम्) |
(ङ) मुच्यते | (मुक्तो भवति, मग्नो भवति) |
(च) ईक्षते | (पश्यति, इच्छति) |
उत्तरम्-
(क) दृष्टवान् | (ख) अकथयत् | (ग) गतवान् | (घ) खादितुम् | (ङ) मुक्तो भवति | (च) पश्यति । |
प्रश्न 7. (अ) पाठात् चित्वा पर्यायपदं लिखत-
(क) वनम् | ………………… |
(ख) शृगालः | ………………… |
(ग) शीघ्रम् | ………………… |
(घ) पत्नी | ………………… |
(ङ) गच्छसि | ………………… |
उत्तरम्-
(क) वनम् | काननम् |
(ख) शृगालः | जम्बुकः |
(ग) शीघ्रम् | तूर्णम्/सत्वरम् |
(घ) पत्नी | भार्या |
(ङ) गच्छसि | यासि |
(आ) पाठात् चित्वा विपरीतार्थकं पदं लिखत-
(क) प्रथमः | ………………….. |
(ख) उक्त्वा | ………………….. |
(ग) अधुना | ………………….. |
(घ) अवेला | ………………….. |
(ङ) बुद्धिहीना | ………………….. |
उत्तरम्-
(क) प्रथमः | द्वितीयः |
(ख) उक्त्वा | बद्ध्वा |
(ग) अधुना | तदा |
(घ) अवेला | वेला |
(ङ) बुद्धिहीना | बुद्धिमती |
योग्यताविस्तार:
भाषिकविस्तारः
ददर्श | दृश् धातु, लिट् लकार, प्रथम पुरुष, एफवचन । |
विभेषि | ‘भी’ धातु, लट् लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन । |
प्रहरन्ती | प्र + हृधातु, शतृ प्रत्यय, स्त्रीलिङ्ग । |
गम्यताम् | गम् धातु, कर्मवाच्य, लोट् लकार, प्रथमपुरुष एकवचन । |
ययौ | ‘या’ धातु, लिट् लकार, प्रथमपुरुष, एकवचन । |
यासि | गच्छसि । |
समास
गलबद्धशृगालकः | गले बद्धः शृगालः यस्य सः । |
प्रत्युत्पन्नमतिः | प्रत्युत्पन्ना मतिः यस्य सः । |
जम्बुककृतोत्साहात् | जम्बुकेन कृतः उत्साह: – जम्बुककृतोत्साहः तस्मात् । |
पुत्रद्वयोपेता | पुत्रद्वयेन उपेता । |
भयाकुलचित्तः | भयेन आकुल: चित्तम् यस्य सः । |
व्याघ्रमारी | व्याघ्रं मारयति इति । |
गृहीतकरजीवितः | गृहीत करे जीवितं येन सः । |
भयङ्करा | भयं करोति या इति । |