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17 Rajasthan Ki Janjati

Rajasthan Ki Janjati (राजस्थान की जनजाति)

Rajasthan Ki Janjati (राजस्थान की जनजाति):- राजस्थान अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (संशोधन) अधिनियम 1976 के अनुसार अनुसूचित जनजातियों की सूची :- भील, भील गरासिया, ढोली भील, डूंगरी भील, डूंगरी गरासिया, मेवासी भील, रावल भील, तड़वी भील, भगालिया, भिलाला, पावरा, वसावा, वसावें भील मीना, डामोर, डामरिया, धानका, तडबी, वालवी, तेतारिया, गरासिया (राजपूत गरासिया को छोडकर) ।

कथौड़ी जनजाति (Kathodi Janjati)

• कथौड़ी जनजाति का मूल स्थान महाराष्ट्र है ।
• सर्वाधिक कथौड़ी जनजाति राजस्थान में उदयपुर में पायी जाती है ।
• उदयपुर की झाडोल, कोटड़ा व सराड़ा पंचायत समिति में कथौड़ी जनजाति निवास करती है ।
• कथौड़ी जनजाति खैर के वृक्ष से तैयार करने के कारण कथौड़ी कहलाई ।
• कथौड़ी जनजाति एकमात्र जनजाति है सो पेय पदार्थ में दूध का प्रयोग नहीं करती ।
• कथौड़ी जनजाति में महिलाएँ पुरुषों के समान शराब पीती है ।
• कथौड़ी जनजाति एकमात्र जनजाति है जिसमें गहनों का प्रचलन नहीं है ।
• कथौड़ी जनजाति की महिलाएँ मराठी अन्दाज में साड़ी पहनती है, जिसे ‘फड़का साड़ी’ कहते है ।
• कथौड़ी जनजाति गाय व लाल मुँह के बन्दर का माँस खाती है ।
• कथौड़ी जनजाति बच्चे के जन्म पर सूर्य भगवान की पूजा करते हैं ।
• कथौड़ी जनजाति के कच्चे घरों को ‘खोलरा’ कहा जाता है ।
• कथौड़ी जनजाति मृतक के मुँह में चावल के दाने व हाथ में रुपया रखते है ।
• कथौड़ी जनजाति के परिवार के मुखिया को नायक कहा जाता है ।
• कथौड़ी जनजाति सबसे कम पढ़ी – लिखी जनजाति है ।
• कथौड़ी जनजाति आर्थिक रूप से भी पिछड़ी हुई है ।
• कथौड़ी जनजाति को राजस्थान सरकार द्वारा 200 दिन का रोजगार (मनरेगा) दिया जाता है ।
• कथौड़ी जनजाति का लोकप्रिय नृत्य लावणी है ।

डामोर जनजाति (Damor Janjati)

• डामोर जनजाति डुँगरपुर में पायी जाती है ।
• राजस्थान की 5 वीं सबसे बड़ी जनजाति डामोर जनजाति है ।
• डूँगरपुर की सीमलवाड़ा पंचायत समिति में सर्वाधिक निवास करती है । अन्य बाँसवाडा में पायी जाती है ।
• डामोर जनजाति स्वयं को राजपूत मानती है ।
• डामोर जनजाति के लोग दीपावली के अवसर पर पशुओं की पूजा करते हैं ।
• डामोर जनजाति के पुरूष महिलाओं के समान गहने पहनते हैं ।
• डामोर जनजाति के परिवार का मुखिया मुखी कहलाता है ।
• डामोर जनजाति के गाँव की छोटी ईकाई को फला कहते है ।
• डामोर जनजाति के मुख्य मेले

  1. छेला बाबसी का मेला पंचमहल (गुजरात)
  2. ग्यारस की खाड़ी, डुंगरपुर ।
    • डामोर जनजाति में बहु विवाह प्रचलित है ।
    • पुत्र का विवाह होने पर उसका अलग से घर बसाने की व्यवस्था कर दी जाती है ।

मीणा जनजाति (Meena Janjati)

• मीणा जनजाति (Mina Janjati) राजस्थान की सबसे बड़ी जनजाति है ।
• राजस्थान की सबसे शिक्षित एवं सम्पन जनजाति मीणा जनजाति है
• मीणा जनजाति सर्वाधिक जयपुर में पायी जाती है ।
• सर्वाधिक शहरी क्षेत्र में रहने वाली जनजाति मीणा जनजाति है ।
• मीणा जनजाति राजस्थान के पूर्वी भाग में अधिक पाई जाती है ।
• मीणा का अर्थ मछली है ।
• मुनि गगन सागर के अनुसार (मीणा पुराण ग्रन्थ में) मीणा जाति भगवान मीन के वंशज है ।
• बहिन को पति का सर्वाधिक सत्कार किया जाता है ।
• आदिवासी मीणाओं का जंगल में बना हुआ घर ‘मेवासे’ कहलाता है ।
• मीणा ‘भूरिया बाबा की झूठी कसम’ नहीं खाते हैं ।
• मीणाओं से विवाह के अवसर पर ‘कागली कर’ वसूला जाता था ।
• मीणा जनजाति में दुल्हा को ‘लाडा’ तथा दुल्हन को ‘लाड़ी’ कहते है ।
• मीणा दो भागों में बाँटा गया – जमींदार मीणा (पुराणावासी), चौकीदार मीणा (नयावासी) है ।
• मीणाओं की 24 खांपे है, लेकिन मुनि मगन सागर ने 5200 खांपे बतलाई है ।
• विवाह विच्छेद को ‘छेड़ा फाड़ना’ कहते है ।
• रावत मीणा अजमेर में पाये जाते है ।
• डेढियां मीणा जालौर व गौडवाड़ा क्षेत्र में पाये जाते है ।
• यदि कोई मीणा जाति का पुरूष अन्य जाति की महिला से विवाह कर लेता है, तो उनसे उत्पन्न सन्तान सुरतवाल मीणा कहलाती है ।
• पडीहार मीणा टोंक, भीलवाडा, बूंदी है ।
• मीणा जनजाति श्राद्ध गोवर्धन पर्व पर निकालती है ।
• मीणा जनजाति गोवर्धन पर्व पर शस्त्रों का प्रयोग न करके उनकी पूजा करती है ।
• मोरनी मोडना का सम्बन्ध मीणाओं से है ।
• मीणा जनजाति के मुखिया पटेल कहलाता है ।
• मीणा जीण माता को विशेष रूप से पुजते हैं ।
• मीणा जनजाति के कुल देवता ‘बुझ’ है ।

गरासिया जनजाति (Garasiya Janjati)

• राजस्थान की तीसरी सबसे बड़ी जनजाति गरासिया जनजाति है ।
• गरासिया जनजाति सर्वाधिक रूप से सिरोही में पायी जाती है ।
• गरासिया जनजाति का मूल स्थान भाखर क्षेत्र सिरोही है ।
• गरासिया जनजाति स्वयं को चौहान वंशीय राजपूत मानती है ।
• गरासिया शब्द गिरास से बना है, जिसका अर्थ छोटा समूह होता है ।
• कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार गरासिया शब्द गवास से बना है जिसका अर्थ सर्वेन्ट होता है ।
• गरासिया जनजाति मृतक का अन्तिम संस्कार 12 वें दिन करते है ।
• गरासिया जनजाति मृतक का स्मारक बनाती है, जिसे ‘हुर्रे’ कहा जाता है ।
• गरासिया जनजाति में मृत्यु भोज को ‘कोधिया या मेक’ कहा जाता है ।
• सामूहिक रूप से की जाने वाली कृषि को हारी – बावरी कृषि कहा जाता है ।
• गरासिया जनजाति में बची की नाल काटने की प्रथा अनाला भोर भू प्रथा कहलाती है ।
• गरासिया जनजाति की विवाहित महिलाएँ हाथी दाँत से बनी चुड़ियाँ पहनती है ।
• गरासिया जनजाति की अविवाहित लड़किया लाख की चूडियाँ पहनती है ।
• प्रमुख विवाह प्रथाएँ –

  1. मोरबन्धीय विवाह – मोरबन्धीय विवाह ब्रह्म विवाह के समान है, जिसमें फेरे लेकर विवाह किया जाता है ।
  2. पहरावणा विवाह – पहरावणा विवाह पण्डित की अनुपस्थिति में नाम मात्र के फेरे लेकर विवाह किया जाता है ।
  3. तानणा विवाह -तानणा विवाह में पशु चराती हुई लड़की को कोई लड़का छू लेता है, तो इसके बाद पंच पटेल वधू का मूल्य निर्धारित करते है । तानणा विवाह में ना सगाई, ना फेरे होते है ।
  4. मेलबों विवाह – लड़की का पिता विवाह खर्च से बचने के लिए अपनी पुत्री को दूल्हे के घर छोड़कर आ जाता है ।
  5. सेवा विवाह – सेवा विवाह में घर जँवाई रखा जाता है ।
  6. खेवणा विवाह -खेवणा विवाह को ‘नाती विवाह’ भी कहते है ।
  7. आटा-साटा विवाह
    • गरासिया जनजाति में सर्वाधिक प्रेम विवाह प्रचलित है तथा मेलो के अवसर पर जीवनसाथी घनते है ।
    • गरासिया जनजाति के घरों को ‘गेर’ कहा जाता है ।
    • गरासिया जनजाति के गाँव की सबसे छोटा इकाई को ‘फालिया’ कहा जाता है ।
    • गरासिया जनजाति की पंचायत का मुखिया ‘सहलोत (पालवी)’ कहलाता है ।
    • गरासिया जनजाति के लोग नक्की झील को पवित्र मानते है तथा अपने पूर्वजों की अस्तियों बहाते है ।
    • गरासिया जनजाति मोर को आदर्श पक्षी मानते है ।
    • गरासिया जनजाति हाथ चक्की को ‘घेण्टी’ कहते है ।
    • गरासिया जनजाति अपने त्यौहारों का प्रारम्भ आखातीज से माना जाता है ।
    • गरासिया जनजाति सफेद जानवर को पवित्र मानते है तथा हत्या नहीं करते ।
    • गरासिया जनजाति का सबसे बड़ा मेला ‘मनखा रा मेला (गणगौर पर)’ सिरोही में लगता है ।
    • गरासिया जनजाति के अन्य मेला ‘चैत्र विचित्र मेला’ है, जो सिरोही में लगता है ।
    • चटकिले रंग के वस्त्र पहनते है ।

सहरिया जनजाति (Sahariya Janjati)

• राजस्थान की चौथी सबसे बड़ी जनजाति सहरिया जनजाति है ।
• सहरिया शब्द की उत्पत्ति फारसी के सहर शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है जंगल में रहने वाला ।
• सर्वाधिक सहरिया जनजाति बारां जिले के किशनगंज और शाहबाज तहसीले में है ।
• राजस्थान की एकमात्र जनजाति है, जिसे भारत सरकार ने आदिम जनजाति समूह में शामिल किया है ।
• सहरिया जनजाति सबसे शर्मिली जनजाति है तथा यह जनजाति कभी भी भीख नहीं मांगती है ।
• सहरिया जनजाति का लोकदेवता तेजाजी है तथा कुलदेवी ‘कोड़िया देवी’ है ।
• सहरिया जनजाति की बस्ती को ‘सहराना’ कहते है ।
• सहरिया जनजाति के मुखिया ‘कोतवाल’ कहलाता है ।
• सहरिया जनजाति के संस्कार –

  1. मृतक के तीसरे दिन राख को आंगन में बिछाई जाती है तथा अगले दिन पद चिह्न देखा जाता है ।
  2. सहरिया जनजाति में लठमार होली प्रचलित है ।
  3. सहरिया जनजाति में पुरूषों को गोदना गुदवाना वर्जित है ।
  4. सहरिया जनजाति में महिला और पुरूष एक साथ विवाह नहीं करते है ।
  5. सहरिया जनजाति में पिता की सम्पति पर पुत्री का अधिकार नहीं होता है ।
  6. सहरिया जनजाति में दहेज का प्रचलन नहीं है ।
  7. सहरिया जनजाति के लोग मकर संक्रांति के अवसर पर लकड़ी के डंडों से लेगी खेलते हैं ।
  8. दीपावली के अवसर पर सहरिया जनजाति ‘हीड़’ और वर्षा ऋतु में ‘ओल्हा’ गीत गाते है ।
  9. सहरिया जनजाति के कच्चे घरों को ‘टापरी’ कहा जाता है ।
  10. सहरिया जनजाति की पेड़ पर बनी हुई झोपड़ी को ‘टोपा, कोरूआ या गोपना’ कहते है ।
  11. सहरिया जनजाति श्राद्ध नहीं निकालते है ।
  12. सहरिया जनजाति का सबसे बड़ा मेला सीताबाड़ी मेला है । जो बारां जिले में भरता है ।
  13. सहरिया जनजाति अपना आदिम गुरु वाल्मिकी को मानते हैं ।

भील जनजाति (Bhil Janjati)

• राजस्थान की सबसे बड़ी जनजाति भील जनजाति है ।
• राजस्थान की सबसे प्राचीन जनजाति भील जनजाति है ।
• भीलों का अर्थ ‘तीर कमान चलाने वाले’ है ।
• कर्नल जेम्स टॉड ने भीलों को ‘वनपुत्र’ कहा है ।
• भील जनजाति (Bheel Janjati) सर्वाधिक उदयपुर में निवास करती है ।
• भीलों को पाड़ा (शक्तिशाली) कहने पर खुश व काड़ा (धनुष बाण चलाने वाले) कहने पर नाराज होते है ।
• भील जनजाति का रणघोष शब्द ‘फायरे फायरे’ है ।
• भील जनजाति की कुल देवी ‘आमजा माता’ तथा कुलदेवता ‘टोटम’ है ।
• आमजा माता का उदयपुर में है ।
• भील जनजाति की वैवाहिक देवी ‘भराडी देवी’ है ।
• भील स्त्री अपने प्रदेश गये पति की याद में ‘सुवटिया’ लोकगीत गाती है ।
• भील पुरुष व स्त्री मिलकर ‘हमसीढ़ो’ गीत गाते हैं ।
• भीलों द्वारा पहाड़ी ढलान पर की गई खेती ‘चिमाता’ कहलाती है ।
• भीलों द्वारा मैदानी भागों में की जाने वाली कृषि ‘दजिया या झुमटी’ कहलाती है ।
• भील जनजाति केसरिया नाथ पर चढ़ी हुई केसर का पानी पीकर झूठ नहीं बोलते है ।
• भीलों का सोमरस ‘महुड़ी या ताड़ी शराब’ को कहते है ।
• भीलों में विवाह से पहले लड़की का गर्भवती होना मान्यता प्राप्त है ।
• भील अपना जीवन साथी ‘भंगोरिया त्यौहार’ पर चुनते हैं ।
• भीलों की बोली ‘बांगड़ी’ है ।
• भीलों के घरों को ‘कू या टापरा’ कहा जाता है ।
• भीलों के मोहल्ले या गाँव को ‘फला’ कहा जाता है ।
• भीलों के गाँव का मुखिया ‘पालवी (तदवी)’ कहलाता है ।
• भीलों के पंचायत का मुखिया ‘गमेती’ कहलाता है ।
• भील स्वयं को भगवान शिव की सन्तान मानते है ।
• जहाँ भील जाति के लोग निवास करते है । यह स्थान ‘मगरा या भोमट’ कहलाता है ।
• चीरा बावसी की प्रथा

  1. चीरा बावसी की प्रथा को ‘सीरा चोखली की प्रथा’ भी कहते हैं ।
  2. भील अपने पूर्वजों की प्रतिमा बनाकर सामाजिक रीति – रिवाज से उसे स्थापित करवाते है ।
  3. भील मृत्यु भोज को ‘काट्या’ कहते है ।
  4. भील अपने सिर पर बांधने वाले सफेद कपड़े को ‘पोत्या’ कहते है ।
  5. भील अपने कमर पर बांधने वाली तंग धोती को ‘देपाड़ा’ कहते है ।
  6. भीलों द्वारा कमर पर पहनने जाने वाला वस्त्र को ‘लंगोटी या खोयतु’ कहते है ।
  7. भील दुल्हन का लहंगा ‘पीरिया’ कहलाता है ।
  8. भील दुल्हन का ओढ़णी या साड़ी ‘सिन्दुरी’ कहलाता है ।
  9. भील स्त्रियाँ मुख्य रूप से ‘मंगुरूटी पहनावा’ पहनती है ।
  10. रोने नामक विद्वान ने भीलों का मूल स्थान मारवाड़ बताया है ।

सांसी जनजाति (Sansi Janjati)

• सांसी जनजाति की उत्पति साहसमल से मानी जाती है ।
• सांसी जनजाति मुख्य रूप से भरतपुर में निवास करती है ।
• सांसी जनजाति में विधवा विवाह का प्रचलन नहीं है ।
• कूकड़ी प्रथा में विवाह के पश्चात् लड़की को अपने चरित्र की परीक्षा देनी पड़ती है ।
• सांसी जनजाति के संरक्षक लोकदेवता भाखर बावजी है ।
• सांसी जनजाति सांड़ व लोमड़ी का माँस खाते हैं ।
• सांसी जनजाति अपने विवादों का निपटारा हरिजनों से करवाते है तथा उनका झूठन भी खोते हैं ।
• सांसी जनजाति दो भागों में बँटी हुई है । बीजा और माला ।

कालबेलिया जनजाति (Kalbeliya Janjati)

• कालबेलिया जनजाति सर्वाधिक अजमेर में है ।
• कालबेलिया जनजाति में सर्वाधिक ‘कन्यावध’ के प्रचलित है ।
• कालबेलिया जनजाति का मुख्य कार्य ‘सर्प पकड़ना’ है ।
• कालबेलिया जनजाति का मुख्य वाद्य यंत्र ‘पुंगी या बीन’ है ।
• कालबेलिया जनजाति की प्रसिद्ध नृत्यांगना ‘गुलाबो बाई’ है ।

कंजर जनजाति (Kanjar Janjati)

• कंजर जनजाति मुख्य रूप से कोटा में पाई जाती है ।
• कंजर शब्द की उत्पति संस्कृत भाषा के ‘काननचार या कनकचार’ से हुई, जिसका अर्थ है जंगल में विचरण करने वाला है ।
• कंजर जनजाति का मुख्य ‘कार्य चोरी करना’ है ।
• कंजर जनजाति की सबसे बड़ी विशेषता ‘एकता’ है ।
• कंजर जनजाति के लोग चोरी करने से पहले ईश्वर की प्रार्थना करते है । उसे ‘पाती मांगना’ कहते है ।
• कंजर जनजाति हनुमानजी, चौथमाता, रक्तदंती देवी की पूजा करते हैं ।
• कंजर जनजाति की कुल देवी ‘जोगणिया माता’ है । जोगणिया माता भीलवाड़ा में है ।
• कंजर जनजाति के घरों में किवाड़ नहीं होते, लेकिन भागने के लिए घरों के पीछे खिड़की जरूर होती है ।
• कंजर जनजाति के लोग मृत्यु के पश्चात् मुँह में शराब डालते है ।
• कंजर जनजाति का प्रिय माँस ‘मोर का माँस’ है ।
• कंजर जनजाति के लोग हाकिम राजा का प्याला पीकर कभी भी झूठ नहीं बोलते है ।

Rajasthan Ki Janjati Ke Vishesh Tathya (राजस्थान के विशेष तथ्य)

• लीला मोरिया – जनजातियों में प्रचलित विवाह प्रथाएँ है ।
• मौताणा – आदिवासी की दुर्घटना में मृत्यु होने पर आरोपी से पंचों द्वारा राशि वसूलने की रीति को मौताणा कहते है ।
• लोकाई – आदिवासियों में प्रचलित मृत्यु भोज की प्रथा ।
• मेलनी – आदिवासियों में शादी पर उनके गौत्र के लोग 10 किग्रा. मक्का ले जाकर देकर आते है ।
• बड़ालिया – विवाह सम्बन्ध में मध्यस्था करने वाले मामा या फूफा को बड़ालिया कहते है ।
• नातरा प्रथा – विधवा महिला द्वारा पुनः विवाह करना ।
• गारिया का ढोल – दुर्घटना ग्रस्त होने पर अथवा सावधान करने के लिए बिना रुके हुये ढोल बजाया जाता है ।
• वार – आदिवासियों में प्रचलित सामूहिक सुरक्षा की परम्परा, जिसमें विपति आने का संदेश प्राप्त होने पर सभी लोग अपने-अपने हथियार लेकर विपति स्थल की ओर दौड़ते है ।
• गोटण – सखा व सखियों के समूह को गोठण कहते है ।
• दापा – वर पक्ष द्वारा कन्या के पिता को दिया गया, वधू मूल्य कहलाता है ।
• 1964 में माणिक्य लाल वर्मा आदिम जाति शोध एवं प्रशिक्षेण संस्थान उदयपुर में स्थापना की गई ।

जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग

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