NCERT Class 10th Sanskrit Chapter 1 शुचिपर्यावरणम्

NCERT Class 10th Sanskrit Chapter 1

प्रथमः पाठः

शुचिपर्यावरणम्

(पवित्र/शुद्ध पर्यावरण)

-कवि हरिदत्त शर्मा
पाठ परिचय- प्रस्तुत पाठ आधुनिक संस्कृत कवि हरिदत्त शर्मा के रचना संग्रह ‘लसल्लतिका’ से संकलित है । इसमें कवि ने महानगरों की यान्त्रिक-बहुलता से बढ़ते प्रदूषण पर चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा है कि यह लौहचक्र तन-मन का शोषक है,जिससे वायुमण्डल और भूमण्डल दोनों मलिन हो रहे हैं । कवि महानगरीय जीवन से दूर नदी-निर्झर, वृक्षसमूह, लताकुञ्ज एवं पक्षियों से गुञ्जित वन-प्रदेशों की ओर चलने की अभिलाषा व्यक्त करता है ।
पाठ के पद्यांशों का अन्वय, कठिन शब्दार्थ एवं सप्रसंग हिन्दी अनुवाद-

(1)

दुर्वहमत्र जीवितं जातं प्रकृतिरेव शरणम् ।

शुचिपर्यावरणम् ॥

महानगरमध्ये चलदनिशं कालायसचक्रम् ।

मनः शोषयत् तनुः पेषयद् भ्रमति सदा वक्रम् ॥

दुर्दान्तैर्दशनैरमुना स्यान्नैव जनग्रसनम् । शुचि… ॥

अन्वय- अत्र जीवितं दुर्वहं जातम्, प्रकृतिः एव शरणम् । पर्यावरणं शुचि (स्यात्) । महानगरमध्ये कालायसचक्रम् अनिशं चलत्, मनः शोषयत्, तनुः पेषयद् सदा वक्रं भ्रमति । अमुना दुर्दान्तैः दशनैः जनग्रसनं नैव स्यात् । पर्यावरणं शुचि (स्यात्) ।

कठिन शब्दार्थ- जीवितम् = जीवन (जीवनम्) । दुर्वहम् = कठिन, दूभर (दुष्करम्) । जातम् = हो गया है (यातम्) । शुचि = पवित्र शुद्ध (पवित्रम्, शुद्धम्) । कालायसचक्रम् = लोहे का चक्र (लौहचक्रम्) । अनिशम् = दिन-रात (अहर्निशम्) । शोषयत् = सुखाते हुए (शुष्कीकुवंत्) । तनुः = शरीर (शरीरम्) । पेषयद् = पीसते हुए (पिष्टीकुर्वन्) । वक्रम् = टेढ़ा (कुटिलम्) । अमुना = इससे (अनेन) । दुर्दान्तैः = भयानक से (भयङ्करैः) । दशनैः = दाँतों से (दन्तै:) । जनग्रसनम् = मानव विनाश (जनभक्षणम्) ।

प्रसंग- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘शुचिपर्यावरणम्’ नामक पाठ से लिया गया है । मूलतः यह पाठ कवि हरिदत्त शर्मा द्वारा रचित काव्य ‘लसल्लतिका’ से संकलित है । इस अंश में महानगरों में बढ़ते प्रदूषण पर चिन्ता व्यक्त करते हुए कवि कहता है कि-

हिन्दी अनुवाद- इस संसार में जीवन अत्यधिक कठिन (दूभर) हो गया है, अतः प्रकृति की ही शरण में जाना चाहिए । पर्यावरण शुद्ध बना रहे । महानगरों के मध्य में प्रदूषणरूपी लौहचक्र दिन-रात चलता हुआ, मन को सुखाता हुआ और शरीर को पीसता हुआ सदा टेढ़ा चलता है । इसके भयानक दाँतों से मानव-विनाश नहीं होना चाहिए । अतः पर्यावरण शुद्ध होना चाहिए ।

(2)

कज्जलमलिनं धूमं मुञ्चति शतशकटीयानम् ।

वाष्पयानमाला संधावति वितरन्तो ध्वानम् ॥

यानानां पङ्क्तयो ह्यनन्ताः कठिनं संसरणम् । शुचि… ॥

NCERT Class 10th Sanskrit Chapter 1 शुचिपर्यावरणम्

अन्वय- शतशकटीयानं कज्जलमलिनं धूमं मुञ्चति । वाष्पयानमाला ध्वानं वितरन्ती संधावति । हि यानानाम् अनन्ताः पङ्क्तयः (सन्ति), संसरणं कठिनम् (अस्ति) । शुद्धि पर्यावरणम् (स्यात्) ।

कठिन शब्दार्थ- शतशकटीयानम् = सैकड़ों मोटरगाड़ियाँ (शकटीयानानां शतम्) । कज्जलमलिनम् = काजल जैसा मलिन (काला) (कज्जलेन मलिनम्) । धूमम् = धुआ (वाष्पः) । मुञ्चति = छोड़ती है (त्यजति) । वाष्पयानमाला = रेलगाड़ी को पंक्ति (वाष्पयानानां पंक्तिः) । ध्वानम् = कोलाहल (ध्वनिम्) । वितरन्ती = देती हुई (ददती) । संधावति = तेज दौड़ती है (तीव्रं धावति) । संसरणम् = चलना (सञ्चलनम्) ।

प्रसंग- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘शुचिपर्यावरणम्’ नामक पाठ से उद्धृत किया गया है । मूलतः यह पाठ कवि हरिदत्त शर्मा द्वारा विरचित काव्य ‘लसल्लतिका’ से संकलित है । इस अंश महानगरों में वाहनों के कोलाहल एवं धुआँ से बढ़ते हुए प्रदूषण का वर्णन करते हुए कहा गया है कि-

हिन्दी अनुवाद- (महानगरों में) सैकड़ों मोटरगाड़ियाँ काजल के समान मलिन (काला) धुआँ छोड़ती रहती हैं । रेलगाड़ियों की पंक्ति कोलाहल करती हुई दौड़ती है । क्योंकि वाहनों की अनन्त पंक्तियाँ हैं, इसलिए चलना भी कठिन हो गया है । अतः पर्यावरण शुद्ध रहना चाहिए ।

(3)

वायुमण्डलं भृशं दूषितं न हि निर्मलं जलम् ।

कुत्सितवस्तुमिश्रितं भक्ष्यं समलं धरातलम् ॥

करणीयं बहिरन्तर्जगति तु बहु शुद्धीकरणम् । शुचि…॥

अन्वय- (प्रदूषणेन) वायुमण्डलं भृशं दूषितम्, न हि निर्मलं जलम् (अस्ति) । भक्ष्यं कुत्सितवस्तुमिश्रितम् (अस्ति), धरातलं समलम् (अस्ति) । (अतः) जगति तु बहिरन्तः बहुशुद्धीकरणं करणीयम् । शुचि पर्यावरणं स्यात् ।

कठिन शब्दार्थ- वायुमण्डलम् = वायुमण्डल (वातावरणम्) । भृशम् = अत्यधिक (अत्यधिकम्) । दूषितम् = दूषित हो गया है (दोषपूर्णम्, अशुद्धम्) । भक्ष्यम् = भोज्य पदार्थ (खाद्यपदार्थम्) । धरातलम् = भूमि (पृथ्वीतलम्) । समलम् = मलयुक्त, गन्दगी से युक्त (मलेन युक्तम्) । जगति = संसार में (संसारे) । बहिः = बाहर से (बाह्यतः) । अन्तः = अन्दर से (आन्तरिकम्) । करणीयम् = करना चाहिए (कर्त्तव्यम्) ।

प्रसंग- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भाग:’ के ‘शुचिपर्यावरणम्’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है । मूलतः यह पाठ कवि हरिदत्त शर्मा द्वारा रचित ‘लसल्लतिका’ रचना-संग्रह से संकलित है । इस अंश में संसार में अत्यधिक प्रदूषण से सम्पूर्ण वायुमण्डल, जल एवं खाद्य पदार्थ प्रदूषित हो जाने का वर्णन करते हुए कहा । गया है कि-

हिन्दी अनुवाद- (प्रदूषण के कारण) वायुमण्डल अत्यधिक दूषित हो गया है, क्योंकि जल भी निर्मल नहीं है । खाद्य पदार्थ प्रदूषित वस्तुओं से मिश्रित हैं, सम्पूर्ण भूमि गन्दगी से युक्त है । अतः संसार में अन्दर और बाहर से अत्यधिक शुद्धीकरण करना चाहिए । पर्यावरण की शुद्धता बनी रहे ।

(4)

कञ्चित् कालं नय मामस्मान्नगराद् बहुदूरम् ।

प्रपश्यामि ग्रामान्ते निर्झर-नदी-पयःपूरम् ॥

एकान्ते कान्तारे क्षणमपि मे स्यात् सञ्चरणम् । शुचि… ॥

अन्वय- कञ्चित् कालं माम् अस्मात् नगराद् बहुदूरम् नय । ग्रामान्ते पयःपूरं निर्झर-नदीम् प्रपश्यामि । एकान्ते कान्तारे क्षणमपि मे सञ्चरणं स्यात् । पर्यावरणं शुचि (स्यात्) ।

कठिन शब्दार्थ – कालम् = समय (समय:) । नय = ले जाओ (गमय,प्रापय) । ग्रामान्ते = गाँव की सीमा पर (ग्रामस्य सीमायाम्) । पयःपूरम् = जल से भरा हुआ तालाब (जलाशयम्) । निर्झर = झरना (प्रपात) । प्रपश्यामि = अच्छी प्रकार से देखूंगा (सम्यक्तया अवलोकयामि) । कान्तारे = जंगल में (वने) । सञ्चरणम् = घूमना (भ्रमणम्) । स्यात् = होना चाहिए (भवेत्) ।

प्रसंग- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भाग:’ के ‘शुचिपर्यावरणम्’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है । मूलत: यह पाठ कवि हरिदत्त शर्मा द्वारा रचित ‘लसल्लतिका’ रचना-संग्रह से संकलित है । इस अंश में कवि महानगरों के प्रदूषित वातावरण से दूर गाँव की सीमा पर एवं वन-प्रदेश के पवित्र वातावरण में जाने की प्रेरणा देता हुआ कहता है कि-

हिन्दी अनुवाद- कुछ समय के लिए मुझे इस नगर से बहुत दूर ले जाओ । गाँव की सीमा पर मैं जल से भरा हुआ तालाब, झरने व नदी को अच्छी प्रकार से देखूंगा । एकान्त जंगल में क्षण भर के लिए भी चाहे मेरा विचरण हो सके । पर्यावरण शुद्ध होना चाहिए ।

(5)

हरिततरूणां ललितलतानां माला रमणीया ।

कुसुमावलिः समीरचालिता स्यान्मे वरणीया ॥

नवमालिका रसालं मिलिता रुचिरं संगमनम् । शुचि…॥

अन्वय- (ग्रामान्ते) हरिततरूणां ललितलतानां रमणीया माला, समोरचालिता कुसुमावलिः मे वरणीया स्यात् । नवमालिका रसालं मिलिता, (तयोः) संगमनं रुचिरम् (जातम्) ।

कठिन शब्दार्थ- हरिततरूणाम् = हरे-भरे वृक्षों की (हरितवृक्षाणाम्) । ललितलतानाम् = सुन्दर लताओं की (रम्याणाम् वल्लरीणाम्) । रमणीया = सुन्दर (मनोहरा) । समीरचालिता = हवा से हिलती हुई (वायुचालिता) । कुसुमावलिः = फूलों की पंक्ति (पुष्पाणाम् पंक्तिः) । मे = मेरे लिए (मम) । वरणीया = ग्रहण करने योग्य (वरणयोग्या, ग्रहणीया) । नवमालिका = आम्र-मज्जरी (आम्रमञ्जरी) । रसालम् = आम (आम्रम्) । संगमनम् = मिलना (मिलनम्) । रुचिरम् = सुन्दर (सुन्दरम्) ।

प्रसंग- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘शुचिपर्यावरणम्’ नामक पाठ से उद्धृत किया गया है । मूलतः यह पाठ कवि हरिदत्त शर्मा द्वारा रचित ‘लसल्लतिका’ रचना-संग्रह से संकलित है । इस अंश में महानगरों के प्रदूषित वातावरण से दूर गाँवों की सीमा पर स्थित प्राकृतिक सौन्दर्य का चित्रण किया गया है ।

हिन्दी अनुवाद- (गाँव की सीमा पर प्रकृति के सौन्दर्य का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि-) हरे-भरे वृक्षों की और सुन्दर लताओं की रमणीय पंक्तियाँ तथा वायु से हिलती हुई पुष्पों की पंक्तियाँ मुझे ग्रहण करनी चाहिए अर्थात् इनकी शोभा देखनी चाहिए । आम्रमञ्जरी आम के साथ मिल गई, उनका मिलन बहुत सुन्दर है । अत: पर्यावरण स्वच्छ होना चाहिए । वही एकमात्र मेरा आश्रय है ।

(6)

अयि चल बन्धो ! खगकुलकलरव गुञ्जितवनदेशम् ।

पुर-कलरव सम्भ्रमितजनेभ्यो धृतसुखसन्देशम् ॥

चाकचिक्यजालं नो कुर्याज्जीवितरसहरणम् । शुचि…॥

अन्वय- अयि बन्धो ! खगकुलकलरव गुज्जितवनदेशं चल । पुर-कलरव-सम्भ्रमितजनेभ्यः सुखसन्देशं धृत । जीवितरसहरणं चाकचिक्यजालं नो कुर्यात् ।

कठिन शब्दार्थ- खगकुलकलरवः = पक्षियों के समूह की ध्वनि (पक्षिसमूहध्वनिः) । गुञ्जितम् = गूंजते हुए (गुञ्जायमानम्) । वनदेशम् = वन प्रदेश को (अरण्यप्रदेशम्) । पुरकलरवः = नगर का कोलाहल (नगरस्य कोलाहलः) । सम्भ्रमितम् = भयभीत हुए (भयभीतम्) । जीवितरसहरणम् = जीवन के सुखरूपी रस का हरण (जीवनस्य सुखस्यापहरणम्) । चाकचिक्यजालम् = चकाचौंध से युक्त संसार (कृत्रिमं प्रभावपूर्ण जगत्) ।

प्रसंग- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘शेमुषी द्वितीयो भाग:’ के ‘शुचिपर्यावरणम्’ नामक पाठ से उद्धृत है । मूलतः यह पाठ कवि हरिदत्त शर्मा द्वारा रचित रचना-संग्रह ‘लसल्लतिका’ से संकलित है । इस अंश में महानगरों के कोलाहलमय प्रदूषित वातावरण को त्यागकर पक्षियों की मधुर ध्वनि से पवित्र वन-प्रदेश में जाने की प्रेरणा दी गई है ।

हिन्दी अनुवाद- (कवि कहता है कि-) हे बन्धु ! पक्षियों के समूह की ध्वनि से गुञ्जायमान वन-प्रदेश में चलो । नगर के कोलाहल से भ्रमित लोगों के लिए सुख का सन्देश दो । चकाचौंध से यह संसार (कहीं) जीवन के आनन्द को नष्ट न कर दे । अतः शुद्ध पर्यावरण ही एकमात्र आश्रय है ।

(7)

प्रस्तरतले लतातरुगुल्मा नो भवन्तु पिष्टाः ।

पाषाणी सभ्यता निसर्गे स्यान्न समाविष्टा ॥

मानवाय जीवनं कामये नो जीवन्मरणम् । शुचि…॥

अन्वय- लतातरुगुल्मा प्रस्तरतले पिष्टाः नो भवन्तु । पाषाणी सभ्यता निसर्गे समाविष्टा न स्यात् । मानवाय जीवनं कामये, नो जीवन्मरणम् ।

कठिन शब्दार्थ- लतातरुगुल्मा = लता, वृक्ष और झाड़ी (लताश्च तरवश्च गुल्माश्च) । प्रस्तरतले = पत्थरों के तल पर (शिलातले) । पिष्टाः = दबी हुई (दमिता) । पाषाणी = पर्वतमयो-पथरीली । निसर्गे = प्रकृति में (प्रकृत्याम्) । न स्यात् = नहीं होनी चाहिए (नहि भवेत्) । कामये = कामना करता हूँ (कामनां करोमि) ।

प्रसंग- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘शेमुषी द्वितीयो भागः’ के ‘शुचिपर्यावरणम्’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है । मूलतः यह पाठ कवि हरिदत्त शर्मा द्वारा विरचित रचना-संग्रह ‘लसल्लतिका’ से संकलित है । इस अंश में कवि मानव-कल्याण और प्रकृति की पवित्रता की कामना करते हुए कहता है कि-

हिन्दी अनुवाद- लता, वृक्ष और झाड़ी पत्थरों के नीचे दबे हुए नहीं होने चाहिए । पथरीली सभ्यता प्रकृति में समाविष्ट नहीं होनी चाहिए । मैं मानव के लिए जीवन की कामना करता हूँ, जीवन के नष्ट होने की नहीं । अतः हमारा पर्यावरण शुद्ध बना रहना चाहिए ।

पाठ्यपुस्तकस्य प्रश्नोत्तराणि

प्रश्न 1. एकपदेन उत्तरं लिखत-

(क) अत्र जीवितं कीदृशं जातम् ?

उत्तरम्- दुर्वहम् ।

(ख) अनिशं महानगरमध्ये किं प्रचलति ?

उत्तरम्- कालायसचक्रम् ।

(ग) कुत्सितवस्तुमिश्रितं किमस्ति ?

उत्तरम्- भक्ष्यम् ।

(घ) अहं कस्मै जीवनं कामये ?

उत्तरम्- मानवाय ।

(ङ) केषां माला रमणीया ?

उत्तरम्- हरिततरूणां ललितलतानाम् ।

प्रश्न 2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत-

(क) कविः किमर्थं प्रकृतेः शरणम् इच्छति ?

(कवि किसलिए प्रकृति की शरण चाहता है ?)

उत्तरम्- अत्र महानगरे जीवितं दुर्वहं जातम्, अतः कविः प्रकृतेः शरणम् इच्छति ।

(यहाँ महानगर में जीवन कठिन/दूभर हो गया है, इसलिए कवि प्रकृति की शरण चाहता है ।)

(ख) कस्मात् कारणात् महानगरेषु संसरणं कठिनं वर्तते ?

(किस कारण से महानगरों में चलना कठिन है ?)

उत्तरम्- महानगरेषु धूमं मुञ्चन्ती कोलाहलं च वितरन्ती अनन्ताः यानानां पङ्क्तयः सन्ति, अस्मात् कारणात् तत्र संसरणं कठिनं वर्तते ।

(महानगरों में धुआँ छोड़ती हुई और कोलाहल करती हुई अनन्त वाहनों की कतारें हैं, इसलिए वहाँ चलना कठिन है ।)

(ग) अस्माकं पर्यावरणे किं किं दूषितम् अस्ति ?

(हमारे पर्यावरण में क्या-क्या दूषित हैं ?)

उत्तरम्- अस्माकं पर्यावरणे वायुमण्डलम्, जलम्, भक्ष्यम् सम्पूर्णञ्च धरातलं दूषितम् अस्ति ।

(हमारे पर्यावरण में वायुमण्डल, जल, खाने योग्य वस्तुएँ और सम्पूर्ण पृथ्वी ही दूषित है ।)

(घ) कविः कुत्र सञ्चरणं कर्तुम् इच्छति ?

(कवि कहाँ चलना चाहता है ?)

उत्तरम्- कविः ग्रामाते एकान्ते कान्तारे सञ्चरणं कर्त्तुम् इच्छति ।

(कवि गाँव के बाहर एकान्त वन में चलना चाहता है ।)

(ङ) स्वस्थजीवनाय कीदृशे वातावरणे भ्रमणीयम् ?

(स्वस्थ जीवन के लिए किस प्रकार के वातावरण में भ्रमण करना चाहिए ?)

उत्तरम्- स्वस्थजीवनाय शुद्धवातावरणे भ्रमणीयम् ।

(स्वस्थ जीवन के लिए शुद्ध वातावरण में भ्रमण करना चाहिए ।)

(च) अन्तिमे पद्यांशे कवेः का कामना अस्ति ?

(अन्तिम पद्य में कवि की क्या कामना है ?)

उत्तरम्- अन्तिमे पद्यांशे कविः मानवाय जीवनस्य कामनां करोति ।

(अन्तिम पद्य में कवि ने मानव के लिए जीवन की कामना की है ।)

प्रश्न 3. सन्धिं/सन्धिविच्छेदं कुरुत-

(क) प्रकृति + …….. = प्रकृतिरेव ।

(ख) स्यात् + …….. + …….. = स्यान्नैव ।

(ग) ……… + अनन्ता: = ह्यनन्ता: ।

(घ) बहिः + अन्तः + जगति = ………………. ।

(ङ) ……… + नगरात् = अस्मान्नगरात् ।

(च) सम् + चरणम्  = …………….. ।

(छ) धूमम् + मुञ्चति  = ……………… ।

उत्तरम्-

(क) प्रकृति + एव = प्रकृतिरेव ।

(ख) स्यात् + न + एव = स्यान्नैव ।

(ग) हि + अनन्ता: = ह्यनन्ता: ।

(घ) बहिः + अन्तः + जगति = बहिरन्तर्जगति ।

(ङ) अस्मात् + नगरात् = अस्मान्नगरात् ।

(च) सम् + चरणम् = सञ्टरणम् ।

(छ) धूमम् + मुञ्चति = धूमं मुञ्टति ।

प्रश्न 4. अधोलिखितानाम् अव्ययानां सहायतया रिक्तस्थानानि पूरयत-

भृशम्यत्रतत्रअत्रअपिएवसदाबहिः ।
(क)इदानीं वायुमण्डलं ……… प्रदूषितमस्ति ।
(ख)………..जीवनं दुर्वहम् अस्ति ।
(ग)प्राकृतिक-वातावरणे क्षणं सञ्चरणम् ……..लाभदायकं भवति ।
(घ)पर्यावरणस्य संरक्षणम् ……….. प्रकृतेः आराधना ।
(ङ)………… समयस्य सदुपयोगः करणीयः ।
(च)भूकम्पित-समये ……….. गमनमेव उचितं भवति ।
(छ)……… हरीतिमा ………… शुचि पर्यावरणम् ।

उत्तरम्-

(क)इदानीं वायुमण्डलं भृशम् प्रदूषितमस्ति ।
(ख)अत्र जीवनं दुर्वहम् अस्ति ।
(ग)प्राकृतिक-वातावरणे क्षणं सञ्चरणम् अपि लाभदायकं भवति ।
(घ)पर्यावरणस्य संरक्षणम् एव प्रकृतेः आराधना ।
(ङ)सदा समयस्य सदुपयोगः करणीयः ।
(च)भूकम्पित-समये बहिः गमनमेव उचितं भवति ।
(छ)यत्र हरीतिमा तत्र शुचि पर्यावरणम् ।

प्रश्न 5. (अ) अधोलिखितानां पदानां पर्यायपदं लिखत-

(क) सलिलम्……………..
(ख) आम्रम्……………..
(ग) वनम्……………..
(घ) शरीरम्……………..
(ङ) कुटिलम्……………..
(च) पाषाण:……………..

उत्तरम्

(क) सलिलम्जलम्
(ख) आम्रम्रसालम्
(ग) वनम्काननम्
(घ) शरीरम्तनुः
(ङ) कुटिलम्वक्रम्
(च) पाषाण:प्रस्तरमः

(आ) अधोलिखितपदानां विलोमपदानि पाठात् चित्वा लिखत-

(क) सुकरम्………………
(ख) दूषितम्………………
(ग) गृहणन्ती………………
(घ) निर्मलम्………………
(ङ) दानवाय………………
(च) सान्ताः………………

उत्तरम्-

(क) सुकरम्दुर्वहम्
(ख) दूषितम्भूषितम्
(ग) गृहणन्तीवितरन्ती
(घ) निर्मलम्समलम्
(ङ) दानवायमानवाय
(च) सान्ताःअनन्ताः

प्रश्न 6. उदाहरणमनुसृत्य पाठात् चित्वा च समस्तपदानि समासनाम च लिखत-

यथा- विग्रह पदानिसमस्तपदम्समासनाम
(क) मलेन सहितम्……………….अन्ययीभाव
(ख) हरिताः च ये तरवः (तेषां)………………. 
(ग) ललिताः च याः लताः (तासाम्)………………. 
(घ) नवा मालिका………………. 
(ङ) धृतः सुखसन्देश: येन (तम्)………………. 
(च) कज्जलम् इव मलिनम्………………. 
(छ) दुर्दान्तैः दशनैः………………. 

उत्तरम् –

यथा- विग्रह पदानिसमस्तपदम्समासनाम
(क) मलेन सहितम्समलम्अन्ययीभाव
(ख) हरिताः च ये तरवः (तेषां)हरिततरूणाम्कर्मधारय
(ग) ललिताः च याः लताः (तासाम्)ललितलतानाम्कर्मधारय
(घ) नवा मालिकानवमालिकाकर्मधारय
(ङ) धृतः सुखसन्देश: येन (तम्)धृतसुखसन्देशम्बहुव्रीहि
(च) कज्जलम् इव मलिनम्कज्जलमलिनम्कर्मधारय
(छ) दुर्दान्तैः दशनैःदुर्दान्तदशनैःकर्मधारय

प्रश्न 7. रेखाङ्कित-पदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-

(क) शकटीयानम् कज्जलमलिनं धूमं मुज्यति ।

(ख) उद्याने पक्षिणां कलरवं चेतः प्रसादयति ।

(ग) पाषाणीसभ्यतायां लतातरुगुल्माः प्रस्तरतले पिष्टाः सन्ति ।

(घ) महानगरेषु वाहनानाम् अनन्ताः पङ्क्तयः धावन्ति ।

(ङ) प्रकृत्याः सन्निधौ वास्तविकं सुखं विद्यते ।

उत्तरम्-प्रश्ननिर्माणम्

(क) शकटीयानम् कीदृशं धूमं मुञ्चति ?

(ख) उद्याने केषां कलरवं चेतः प्रसादयति ?

(ग) पाषाणीसभ्यतायां के प्रस्तरतले पिष्टाः सन्ति ?  

(घ) कुत्र वाहनानाम् अनन्ताः पङ्क्तयः धावन्ति ?

(ङ) कस्या सन्निधौ वास्तविकं सुखं विद्यते ?

योग्यताविस्तार:

समास- समसनं समासः

समास का शाब्दिक अर्थ होता है- संक्षेप । दो या दो से अधिक शब्दों के मिलने से जो नया और संक्षिप्त रूप बनता है वह समास कहलाता है । समास के मुख्यत: चार भेद हैं-

1. अव्ययीभाव समास  2. तत्पुरुष3. बहुव्रीहि4. द्वन्द्व

1.अव्ययीभाव

इस समास में पहला पद अव्यय होता है और यही प्रधान होता है और समस्तपद अव्यय बन जाता है ।

यथा- निर्मक्षिकम्-मक्षिकाणाम् अभावः ।

यहाँ प्रथमपद निर् है और द्वितीयपद मक्षिकम् है । यहाँ मक्षिका की प्रधानता न होकर मक्षिका का अभाव प्रधान है, अतः यहाँ अव्ययीभाव समास है । कुछ अन्य उदाहरण देखें-

(i) उपग्रामम्ग्रामस्य समीपे(समीपता की प्रधानता)
(ii) निर्जनम्जनानाम् अभावः(अभाव को प्रधानता)
(iii) अनुरथम्रथस्य पश्चात्(पश्चात् की प्रधानता)
(iv) प्रतिगृहम्गृहं गृहं प्रति(प्रत्येक की प्रधानता)
(v) यथाशक्तिशक्तिम् अनतिक्रम्य(सीमा की प्रधानता)
(vi) सचक्रम्चक्रेण सहितम्(सहित की प्रधानता)

2. तत्पुरुष – प्रायेण उत्तरपदप्रधानः तत्पुरुषः इस समास में प्रायः उत्तरपद की प्रधानता होती है और पूर्व पद उत्तरपद के विशेषण का कार्य करता है । समस्तपद में पूर्वपद की विभक्ति का लोप हो जाता है ।

यथा- राजपुरुषः अर्थात् राजा का पुरुष । यहाँ राजा की प्रधानता न होकर पुरुष की प्रधानता है ।

(i) ग्रामगतःग्राम गतः ।
(ii) शरणागतःशरणम् आगतः ।
(iii) देशभक्त:दशस्य भक्तः ।
(iv) सिंहभीत:सिंहात् भीतः ।
(v) भयापन्नःभयम् आपन्नः ।
(vi) हरित्रात :हरिणा त्रातः ।

तत्पुरुष समास के दो प्रमुख भेद हैं- कर्मधारय और द्विगु ।

(i) कर्मधारय- इस समास में एक पद विशेष्य तथा दूसरा पद पहले पद का विशेषण होता है । विशेषण विशेष्य भाव के अतिरिक्त उपमान उपमेय भाव भी कर्मधारय समास का लक्षण है ।

यथा-

पिताम्बरम्पीतं च तत् अम्बरम्
महापुरुषःमहान् च असौ पुरुषः ।
कुज्जलमलिनम्कज्जलम् इव मलिनम् ।
नीलकमलम्नीलं च तत् कमलम् ।
मीननयनम्मीन इव नयनम् ।
मुखकमलम्कमलम् इव मुखम् ।

(ii) द्विगु-संख्यापूर्वो द्विगुः इस समास में पहला पद संख्यावाची होता है और समाहार (एकत्रीकरण या समूह) अर्थ की प्रधानता होती है ।

यथा- त्रिभुजम्त्रयाणां भुजानां समाहारः ।
इसमें पूर्वपद ‘त्रि’ संख्यावाची है ।
पंचपात्रम्पंचानां पात्राणां समाहारः ।
पंचवटीपंचानां वटानां समाहारः ।
सप्तर्षि:सप्तानां ऋषीणां समाहारः ।
चतुर्युगम्चतुणां युगानां समाहारः ।

3. बहुव्रीहि- अन्यपदप्रधानः बहुब्रीहिः

इस समास में पूर्व तथा उत्तर पदों की प्रधानता न होकर किसी अन्य पद की प्रधानता होती है । यथा-

पीताम्बरःपीतम् अम्बरम् यस्य सः (विष्णुः) । यहाँ न तो पीतम् शब्द की प्रधानता है और न अम्बरम् शब्द की अपितु पीताम्बरधारी किसी अन्य व्यक्ति (विष्णु) की प्रधानता है ।
नीलकण्ठःनीलः कण्ठः यस्य सः (शिवः) ।
दशाननःदश आननानि यस्य सः (रावणः) ।
अनेककोटिसारःअनेककोटिः सारः (धनम्) यस्य सः ।
विगलितसमृद्धिम्विगलिता समृद्धिः यस्य तम् (पुरुषम्) ।
प्रक्षालितपादम्प्रक्षालितौ पादौ यस्य तम् (जनम्) ।

4. द्वन्द्व – ‘उभयपदप्रधानः द्वन्द्वः’ इस समास में पूर्वपद और उत्तरपद दोनों की समान रूप से प्रधानता होती है । पदों के बीच में ‘च’ का प्रयोग विग्रह में होता है ।

यथा-

रामलक्ष्मणौरामश्च लक्ष्मणश्च ।
पितरौमाता च पिता च
धर्मार्थकाममोक्षाःधर्मश्च, अर्थश्च, कामश्च, मोक्षश्च ।
वसन्तग्रीष्मशिशिराःवसन्तश्च ग्रीष्मश्च शिशिरश्च ।

NCERT Quiz

NCERT Class 10th Sanskrit Book 

पर्यावरण शब्द में कौन-कौनसे उपसर्ग है ?

पर्यावरण = परि + आ + वरण । पर्यावरण में “परि” और “आ” उपसर्ग है ।

शुचिपर्यावरण अध्याय की रचना किसने की थी ?

शुचिपर्यावरण अध्याय की रचना कवि हरिदत्त शर्मा ने की थी ।

शकटीयानम् कीदृशं धूमं मुञ्चति ?

शकटीयानम् कज्जलमलिनं धूमं मुज्यति ।

पाषाणीसभ्यतायां के प्रस्तरतले पिष्टाः सन्ति ?

पाषाणीसभ्यतायां लतातरुगुल्माः प्रस्तरतले पिष्टाः सन्ति ।

उद्याने केषां कलरवं चेतः प्रसादयति ?

उद्याने पक्षिणां कलरवं चेतः प्रसादयति ।

कुत्र वाहनानाम् अनन्ताः पङ्क्तयः धावन्ति ?

महानगरेषु वाहनानाम् अनन्ताः पङ्क्तयः धावन्ति ।

कस्या सन्निधौ वास्तविकं सुखं विद्यते ?

प्रकृत्याः सन्निधौ वास्तविकं सुखं विद्यते ।
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