राजस्थान की प्रमुख रीति रिवाज एवं प्रथाएँ Rajasthan ki pramukha riti riwaj Evam Prathaen Bhartiya 16 Sanskar

25 राजस्थान की प्रमुख रीति रिवाज एवं प्रथाएँ

राजस्थान की प्रमुख रीति रिवाज एवं प्रथाएँ

राजस्थान की प्रमुख रीति रिवाज एवं प्रथाएँ :- कल हमने 24 राजस्थान की प्रमुख चित्रशैली के बारे में पढ़ा था । आज हम राजस्थान की प्रमुख संस्कार, रीति-रिवाज और प्रथाएँ के बारे विस्तार से अध्ययन करेगे । संस्कारों में भारतीय अर्थात् वैदिक 16 संस्कार है जो (1) गर्भाधान (गोदभराई) (2) पुनसवन (3) सीमान्तो उन्नयन (4) जातकर्म (5) नामकरण (6) निष्क्रमण (7) अन्नप्राशन (8) जड़ुला (चुड़ाकर्म) (9) कर्णभेदन (10) विद्यारम्भ (11) उपनयन (यज्ञोपवित) (12) वेदारम्भ (13) केशान्त (गोदान) (14) दीक्षान्त (समावर्तन) (15) विवाह (16) अन्तिम संस्कार (अन्त्येष्टि) है । इनके अलावा राजस्थान की रीति-रिवाज (प्रथाएँ) है । दीर्घकाल समय होने के कारण रीति-रिवाज कुप्रथाएँ में बदल गई ।

संस्कार

संस्कार कितने होते है ?

संस्कार 16 होते है जिनके क्रमशः नाम है – (1) गर्भाधान (गोदभराई) (2) पुनसवन (3) सीमान्तो उन्नयन (4) जातकर्म (5) नामकरण (6) निष्क्रमण (7) अन्नप्राशन (8) जड़ुला (चुड़ाकर्म) (9) कर्णभेदन (10) विद्यारम्भ (11) उपनयन (यज्ञोपवित) (12) वेदारम्भ (13) केशान्त (गोदान) (14) दीक्षान्त (समावर्तन) (15) विवाह (16) अन्तिम संस्कार (अन्त्येष्टि) ।

• गर्भाधान (गोदभराई) : – शिशु का गर्भ में प्रवेश करने पर गर्भाधान (गोदभराई) संस्कार है ।
• पुनसवन : – गर्भ में स्थित भ्रूण को पुत्र का रूप देने के लिए देवताओं की स्तुति करना ।
• सीमान्तो उन्नयन : – गर्भवती स्त्री को अमंगलकारी शक्तियों से बचाने ने लिए किया गया, सीमान्तो उन्नयन संस्कार है ।
• जातकर्म : – बालक के जन्म पर किया जाने वाला संस्कार जातकर्म कहलाता है ।
• नामकरण : – बच्चे के जन्म के 10 या 12वें दिन नाम रखना, नामकरण संस्कार है ।
• निष्क्रमण : – जब बच्चा 4 महिने का होता है, तो उसे पहली बार चाँद और सुरज का दर्शन करवाया जाता है । यह निष्क्रमण संस्कार है ।
• अन्नप्राशन : – जब बच्चा 6 महिने का होता है, तो उसे पहली बार अन्न खिलाना, अन्नप्राशन संस्कार है ।
• जड़ुला (चुड़ाकर्म) : – जब बच्चा 1 या 3 वर्ष होता है तो उसके पहली बार बाल काटना, जड़ुला (चुड़ाकर्म) संस्कार है ।
• कर्णभेदन ; – जब बच्चा तीन या पाँच साल का होता है, तो उसके कानों को बिदना, कर्णभेदन संस्कार है ।
• विद्यारम्भ : – देवताओं की स्तुति कर बालक को गुरू के समक्ष अक्षर ज्ञान करवाना, विद्याम्भ संस्कार है ।
• उपनयन (यज्ञोपवित) : – शिक्षा के लिए बालक को गुरू के पास ले जाना ही उपनयन संस्कार है । इसी संस्कार से ब्रह्मचर्य आश्रम प्रारम्भ होता है ।
• वेदारम्भ : – वेदों का ज्ञान देना प्रारम्भ होता है ।
• केशान्त (गोदान) : – 16 वर्ष की अवस्था में विद्यार्थी के बाल काटे जाते है ।
• दीक्षान्त (समावर्तन) : – शिक्षा की समाप्ति पर किया जाने वाला संस्कार है ।
• विवाह : – शादी की जाती है ।
• अन्तिम संस्कार (अन्त्येष्टि) : – शव को जलाया जाता है ।

जन्म

• जामणा : – बच्चा होने पर उसके मामा या नाना द्वारा आभूषण, वस्त्र, मिठाई लेकर जाना ।
• ढूँढ़ :- बच्चा होने पर उसकी भुआ द्वारा आभूषण, वस्त्र, खिली और खिलौने लाकर देती है । यह पर्व महाशिवरात्री से लेकर होली तक मनाया जाता है ।

मृत्यु

• मौतर : – मृत्यु के पश्चात् दिया जाने वाला मृत्यु भोज को मौसर कहते है ।
• जौसर : – जीवित अवस्था में बोहरवें की रस्म अदा करना जौसर कहलाता है ।
• केसरिया : – राजपूत योद्धा युद्ध में जाते समय केसरिया रंग का सापा पहन कर जाते हैं और वीरगति को प्राप्त होते है ।
• जौहर : – जब राजपूत योद्धा केसरिया करते है, तो महिलाएँ अपने आपको (अपने जीवन को) अग्नि या जल को समर्पित कर देती उसे जौहर कहते है ।
• अग्नि जौहर : – जब राजपूत नारियाँ जौहर करते समय अग्नि में कूदती है, अग्नि जौहर कहलाता है ।
• जल जौहर : – जब राजपूत नारियाँ जौहर करते समय जल में कूदती है, जल जौहर कहलाता है ।
• साका : जब केसरिया और जौहर दोनों होते है तो उसे साका कहते है ।
• अर्द्धसाका : जब केसरिया और जौहर में से कोई एक नहीं हो तो अर्द्ध साका कहलाता है ।
• बिखेर : – वृद्ध व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात् उस पर पैसे फेंकना बिखेर कहलाता है ।
• आघेटा : – घर से श्मशान तक की यात्रा के बीच दिशा परिवर्तित किया जाना, आघेटा कहलाता है ।
• संथारा प्रथा : – इसमें अन्न-जल त्याग कर प्राण त्यागे जाते है । संथारा प्रथा जैन समाज में प्रचलित है ।

विवाह

• बढ़ार : – विवाह के दूसरे दिन दिया गया जाने नाला प्रतिभोज को बढ़ार कहते है ।
• सामेल या मधुपर्क : – बासत आने पर दुल्हन का पिता अपने सगे सम्बन्धियों के साथ बारात का स्वागत करता है, उसे सामेला/ सामेल/ मधुपर्क कहते है ।
• पहरावनी (रंगबरी) : – बारात विदा होते समय दुल्हन का पिता प्रत्येक बाराती तथा दूल्हा – दुल्हन को उपहार या पैसा देता है उसे पहरावनी या रंगबरी कहते है ।
• बरी पडला : – वर पक्ष द्वारा वधू पक्ष को आभूषण, वस्त्र, मेवे, मिठाई आदि भेजना बरी पडला कहलाता है ।
• कोथला : – पुत्री के प्रथम जापा होने पर उसके पति व ससुराल के लोगों को बुलाकर भेंट देना, कोथला कहलाता है ।
• गौना (मुकलावा/आवणी-जावणी) : -अवयस्क कन्या के वयस्क होने पर उसे ससुराल भेजना, गौना (मुकलावा/आवणी-जावणी) कहलाता है ।
• चारी प्रथा : – वर पक्ष द्वारा वधू पक्ष को दहेज दिया जाता है । चारी प्रथा टोंक व भीलवाड़ा में प्रचलित है ।

कुरीतियाँ

• समाधी प्रथा : – 1844 में जयपुर रियासत में रोक लगाई गई । रामसिंह द्वितीय के शासन काल में जयपुर के P.A. लुडलों ने रोक लगाई ।
• सती प्रथा : – राजस्थान में सर्वप्रथम 1822 में बूँदी रियासत में रोक लगाई गई, लेकिन अप्रभावी रही । राजा राममोहन राय के प्रयासों से 1829 में लार्ड विलियम बैटिंग में पर रोक लगाई । 1830 में अलवर रियासत में सती प्रथा पर रोक लगाई गई । सती प्रथा का सम्बन्ध राजपूतों से है । 1987 में दिवराला (सीकर) में रूप कंवर (पत्ति- मालसिंह) के सती होने के पश्चात् सती प्रथा पर पूर्णरूप से रोक लगा दी गई ।
• कन्या वध प्रथा : – 1829 में लार्ड विलियम बैटिंग ने कन्या वध पर रोक लगाई । राजस्थान में सर्वप्रथम कोटा रियासत में कन्या वध (1833) पर रोक लगाई गई । 1834 में बुंदी रियासत में रोक लगाई गई । कन्या वध प्रथा राजपूतों में अधिक प्रचलित है । हाड़ौती क्षेत्र में कन्या वध पर रोक हाड़ौती क्षेत्र के PA विलकिशन के प्रयासों से लगाई गई ।

• त्याग प्रथा : – त्याग प्रथा पर रोक 1841 में मारवाड़ रियासत में मानसिंह राठौड़ के समय लगाई गई । पुत्री के विवाह पर दक्षिणा देना त्याग प्रथा कहलाता है । त्याग प्रथा पर रोक लगाने का प्रयास वाल्टरकृत राजपूत हितकारणी सभा ने किया । त्याग प्रथा का सम्बन्ध क्षत्रिय समाज (राजपूत) से है ।
• बाल विवाह : – 1929 में अजमेर के हरविलास शारदा ने बाल विवाह के सम्बन्ध में अधिनियम बनाया जिसे शारदा एक्ट कहते है । शारदा एक्ट के तहत लडकी की आयु 14 वर्ष तथा लडके की आयु 18 वर्ष थी लेकिन वर्तमान में लड़की-लड़के की आयु 21 वर्ष की गई है । लार्ड इरविन ने शारदा एक्ट को 1 अप्रैल 1930 को सम्पूर्ण भारत में लागू किया । राजस्थान में सर्वाधिक बाल विवाह आखा तीज को होते हैं । भारत में सर्वप्रथम अकबर ने बाल विवाह पर रोक लगवाने का प्रयास किया था ।
• दहेज प्रथा : – दहेज प्रथा पर रोक 1961 में लगाई गई ।
• दास प्रथा : – जहाँ पर दासों को रखा जाता था यह स्थान राजलोक कहलाता था । शासक दासी को उपपत्नि के रूप में स्वीकार करता था, उसे पासवान या खवासन रानी कहा जाता था । भारत में सर्वप्रथम 1562 में अकबर ने दास प्रथा पर रोक लगाई । 1832 में लार्ड विलियम बैटिंग ने दास प्रथा पर रोक लगाई । राजस्थान में 1832 में कोटा व बूँदी रियासत में सर्वप्रथम रोक लगाई गई ।
• डावरिया प्रथा : – राजा-महाराजा अपनी पुत्री के विवाह में कुछ कंवारी कन्याएँ दहेज में देते थे उसे डावरिया प्रथा कहते थे ।
• विधवा विवाह : – ईश्वर चन्द विद्यासागर के प्रयासों से 1856 में लार्ड डलहोजी ने विधवा पुन: विवाह के सम्बन्ध में अधिनियम बनाया । चाँदकरण शारदा ने विधवा विवाह नामक पुस्तक लिखी है । सन्त जाम्भोजी, स्वामी दयानन्द सरस्वती और जयपुर के शासक सवाई जयसिंह ने भी विधवा विवाह का समर्थन किया ।

• डाकन प्रथा : – 1853 में उदयपुर में रोक लगाई गई । डाकन प्रथा पर रोक स्वरूप सिंह ने लगाई । डाकन प्रथा सामान्यतः आदिवासी भील औरणाओं में प्रचलित है ।
• सागडी प्रथा : – इसे बन्धुआ मजदूर या हाली प्रथा भी कहते हैं । हाली प्रथा पर रोक 1961 में लगाई गई ।
• बेगार प्रथा : – बेगार प्रथा में मुफ्त की सेवायें ली जाती है । राजपूत और ब्राह्मण बेगार लेते थे लेकिन देते नहीं थे ।
• औरत व लड़के-लड़कियों का क्रय विक्रय : – राजस्थान में सर्वप्रथम 1831 में कोटा रियासत में रोक लगाई गई । जयपुर में 1847 में रोक लगाई गई ।

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