19.4 महाराणा प्रताप मेवाड़ इतिहास के सबसे प्रतापी शासक

पिछली कक्षाओं में हमने मेवाड़ का इतिहास-1,  मेवाड़-का-इतिहास-2, मेवाड़ का इतिहास-खानवा का युद्ध को हमने पढ़ लिया है और आज हम 19.4 मेवाड़ का इतिहास को आगे बढ़ाते हुए खानवा का युद्ध तक पढ़ेगें । मेवाड़ के इतिहास के सूरवीर महाराणा प्रताप के बारे में अध्ययन करेंगे । उन्होंने कौन-कौनसे युद्ध किए और किन-किनसे संधि की ।

मेवाड़ इतिहास के सबसे प्रतापी शासक महाराणा प्रताप (Maharana Pratap)

• इनका शासनकाल 1572 से 1507 तक रहा ।
• इनको ‘मेवाड़ का केसरी’ कहते है ।
• इनका बचपन का नाम कीका था ।
• इनका जन्म कुम्भलगढ़ दुर्ग (राजसमन्द) में 9 मई 1540 को हुआ ।
• इनका राज्याभिषेक गोगुन्दा (उदयपुर) में 28 फरवरी 1572 को हुआ ।
• इनका विधिवत् राज्याभिषेक कुम्भलगढ (राजसमन्द) में हुआ ।
• इनकी मृत्यु चावण्ड (उदयपुर) में 19 जनवरी 1597 में 19 जनवरी 1597 को हुई ।
• इनकी छतरी बाण्डोली, उदयपुर में (8 खम्भों की) बनी है ।
• इनकी छतरी का निर्माण बख्तावर सिंह ने करवाया था ।
• ये 32 वर्ष की अवस्था में शासक बना और 57 वर्ष जीवित रहा ।
• इन्होंने 25 वर्ष तक शासन किया ।
• इनके पिता ‘उदयसिंह’ थे ।
• इनकी माता ‘जैवन्ता बाई’ थी ।
• जैवन्ता बाई को ‘राजस्थान की जीजा बाई’ कहते है ।
• इनकी पत्नी का नाम अजब दे पवार है ।
• उदयसिंह की पत्नी जैवन्ता बाई से महाराणा प्रताप उत्पन्न हुआ, जो बडा पुत्र था ।
• उदयसिंह की रानी भटयाणी, जिसका वास्तविक नाम धीरबाई था, उससे जगमाल उत्पन्न हुआ ।
• उदयसिंह रानी भटयाणी के प्रभाव में आकर अपने छोटे बेटे जगमाल को मेवाड़ का शासक घोषित किया ।
• महाराणा प्रताप अखेराज सोनवा की मदद से जगमाल को हटाकर शासक बना ।
• इनकी कमर पर कटार कृष्ण दास ने बाँधी ।
• जगमाल रूठकर अकबर की सेवा में चला गया और मेवाड़ का दुश्मन बन गया ।
• जगमाल 1503 में सिरोही में हुए दन्ताणी के युद्ध में मारा गया ।
• जब इनका राज्यभिषेक हुआ, उस समय मारवाड़ का शासक उपस्थित था ।
• उदयसिंह ‘राजस्थान का प्रथम शासक’ था, जिसने छापामार प्रणाली अपनाई ।

चार संधि वार्ताकार

• अकबर ने महाराणा प्रताप से अधिनता स्वीकार करवाने के लिए चार संधि वार्ताकार भेजे ।
• अकबर ने जलाल खाँ कोची को 1572 में महाराणा प्रताप से अधिनता स्वीकार करवाने के लिए भेजा ।
• अकबर ने मानसिंह प्रथम को 1573 में महाराणाप्रताप से अधिनता स्वीकार करवाने के लिए भेजा ।
• अकबर ने भगवन्त दास को 1573 में महाराणाप्रताप से अधिनता स्वीकार करवाने के लिए भेजा ।
• अकबर ने टोडर मल को 1573 में महाराणाप्रताप से अधिनता स्वीकार करवाने के लिए भेजा ।
• परन्तु चारो वार्ताकार असफल हुए ।

हल्दी घाटी का युद्ध

• हल्दी घाटी का युद्ध 18/21 जून 1576 को राजसमन्द में हल्दीघाटी का मैदान में गोगुन्दा और खमनौर के बीच हुआ ।
• यह युद्ध महाराणा प्रताप व अकबर के बीच हुआ ।
• यह युद्ध बनास नदी के किनारे हुआ ।
• इस युद्ध में अकबर स्वयं नहीं आसफ अपने सेनापति मानसिंह प्रथम व आसफ खां को भेजा ।
• हल्दी घाटी के युद्ध में आसफ खाँ ने जिहाद का नारा दिया ।
• इस युद्ध में झूठी अफवाह मेहतर खाँ ने फैलाई की अकबर स्वयं युद्ध भूमि में आ रहे है ।
• इस युद्ध में महाराणाप्रताप का छत्र झाला बीदा ने धारण किया ।
• महाराण प्रताप का घोड़ा चेतक था ।
• चेतक की छतरी बलिया गाँव हल्दीघाटी मैदान राजसमन्द में है ।
• महाराणाप्रताप का हाथी रामप्रसाद और लूणा था ।
• इस युद्ध के बाद अकबर ने रामप्रसाद हाथी का नाम का ‘पीर प्रसाद’ रख दिया ।
• अकबर सेना में हाथी गजराज, गजमुक्त, हवाई हाथी और मरदाना ।
• इस युद्ध में मरदाना नामक हाथी पर मानसिंह बैठा हुआ था ।
• इन्होंने हल्दीघाटी युद्ध से पहले सम्पूर्ण मेवाड़ की रक्षा की जिम्मेदारी पुंजा भील को सौपी ।
• इस युद्ध में बदायूनी ने राजपुतो के रक्त से अपनी दाढ़ी रंगी ।
• हल्दी घाटी के युद्ध में अकबर की सेना में बदायुनी तथा प्रताप की सेना में गौवर्धन बोगेसो नामक विद्वान उपस्थित था ।
• जब महाराणा प्रताप युद्ध भुमि से भाग रहा था तो दो मुगल सैनिको ने प्रताप का पिछाकर मारना चाहा तो महाराणाप्रताप के छोटे भाई शक्ति सिंह ने बचाया ।
• शक्ति सिंह ने अपना घोड़ा महाराणाप्रताप को दिया ।
• इस युद्ध में महाराणा प्रताप का एकमात्र मुस्लिम सेनापति हाकिम खाँ सुरी था ।
• इस युद्ध के पश्चात् नवम्बर 1576 में अकबर स्वयं उदयपुर में आया और उदयपुर को जीतकर उदयपुर का नाम मुहम्मदाबाद रखा ।
• बदायुनी ने प्रताप को ‘राजस्थान का महानतम सुरतान’ कहा है ।
• इस युद्ध के पश्चात् इनकी आर्थिक सहायता भामाशाह ने की ।
• भामाशाह के भाई ताराचन्द ने भी महाराणाप्रताप की आर्थिक सहायता की ।
• भामाशाह पाली का निवासी था, जिसे मेवाड़ का उद्धाकर, कर्ण, दानवीर भी कहते है ।
• हल्दी घाटी युद्ध का आँखों देखा हाल बदायुनी में प्रस्तुत किया ।

हल्दी घाटी का युद्ध महाराणा प्रताप व अकबर के बीच हुआ Maharana pratap
हल्दी घाटी का युद्ध के सम्बन्ध में कथन

• कर्नल जेम्स टॉड ने हल्दी घाटी के युद्ध को मेवाड़ की थर्मोपल्ली कहा ।
• अबुल फजल ने अकबरनामा में इस युद्ध को खमनौर का युद्ध कहा ।
• बदायुनी ने मुनतकाफ – उल – तारीख में हल्दी घाटी के युद्ध को गोगुन्दा का युद्ध कहा ।
• A.L श्रीवास्तव ने हल्दी घाटी युद्ध को बादशाह बाग कहा है ।
• डॉ॰ गोपी शर्मा ने हल्दी घाटी युद्ध को अनिर्णित युद्ध कहा है ।
• हल्दी घाटी के युद्ध को ‘हाथियों का युद्ध’ तथा ‘बनास युद्ध’ के नाम से भी जाना जाता है ।

कुम्भलगढ़ का युद्ध

• कुम्भलगढ़ का युद्ध 1578 में तीन बार हुआ था ।
• यह युद्ध अकबर व प्रताप को मध्य हुआ ।
• अकबर ने इस युद्ध में अपना सेनापति शाहबाज खाँ को भेजा ।

दिवेर का युद्ध

• दिवेर का युद्ध अक्टुबर 1582 में राजसमन्द में हुआ ।
• दिवेर का युद्ध अकबर व प्रताप के मध्य हुआ ।
• महाराणा प्रताप की सेना का नेतृत्व सुलतान खाना ने किया ।
• दिवेर का युद्ध में विजय महाराणा प्रताप की हुई ।
• कर्नल जेम्स टॉड हे दिवेर के युद्ध को मेवाड़ का मेराथन कहा ।
• महाराणा प्रताप ने 1585 में चावण्ड को राजधानी बनाया ।
• 1584-85 में अकबर ने जगनाथ कच्छवाह के नेतृत्व में अन्तिम युद्ध अभियान महाराणा प्रताप के विरूद्ध भेजा ।
• जीवित रहते हुए महाराणा प्रताप ने चित्तौड़गढ़ और माण्डलगढ़ को छोड़कर सम्पूर्ण मेवाड़ अधिकार कर लिया ।
• महाराणा प्रताप के सोये हुए आत्मसम्मान को फिर से जगाया ।
• पृथ्वीराज राठौड़ अकबर का दरबारी कवि था ।

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