11 चौहानों का इतिहास History of Chauhan

चौहानों का इतिहास (History of Chauhan)

7 वीं से 12 वीं शताब्दी तक का काल ‘चौहानों का काल’ कहलाता है ।

चौहानों की उत्पत्ति के मत

• अग्नि कुण्ड का मत

  1. अग्नि कुण्ड का मत चन्द्रवरदाई ने दिया ।
  2. चन्द्रवरदाई के पृथ्वीराज रासौ ग्रन्थ के अनुसार चौहानों की उत्पत्ति अग्नि कुण्ड से हुई ।
  3. इस यज्ञ से चार जातियाँ उत्पन्न हुई । प्रतिहार, परमार, चालुक्य (सोंलकी), चौहान (चाहवान) ।
  4. अग्नि कुण्ड का यज्ञ माउंट आबू (सिराही) में ऋषि वशिष्ट मुनि द्वारा करवाया था ।
  5. इस मत का समर्थन सुर्यमल मिश्रण व मुहणौत नैणसी ने किया था ।
    • विदेशी मत
  6. विदेशी मत कर्नल जेम्स टॉड ने दिया ।
  7. कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार चौहान मध्य एशिया से आये थे ।
  8. 4 विदेशी जातियाँ आयी । शक, हुण, कुषाण, सिथियन ।
    • ब्राह्मण वंशीय मत
  9. ब्राह्मण वंशीय मत डॉ॰ गोपी शर्मा व डॉ॰ दशरथ शर्मा ने दिया ।
  10. कुम्भा के रसिक प्रिया टिका के अनुसार चौहान नागर वंशीय ब्राह्मण है ।
    • विशुद्ध भारतीय का मत
  11. विशुद्ध भारतीय का मत सी॰ वी॰ वेद ने दिया ।
  12. सी॰ वी॰ वेद ने अनुसार चौहान वेदिक क्षेत्रियों की संतान है ।
    • सुर्यवंशी मत
  13. सुर्यवंशी मत डॉ॰ गौरी शंकर औझा, जयानक (पृथ्वीराज विजय) और नयनचन्द्र सुरि (हमीर महाकाव्य) ने दिया
  14. इनके अनुसार चौहान सुर्यवंशी तथा आर्यों की संतान है ।
    • चन्द्रवंशी मत
  15. हाँसी के शिलालेख तथा अचलेश्वर मन्दिर के शिलालेख के अनुसार चौहान चन्द्रवंशी है ।
    • मिश्रित मूल का मत
  16. डी॰ पी॰ चट्टोपाध्याय ने दिया । आर्यों की संतान है ।

शाकम्बरी के चौहान

चौहानों-का-इतिहास-History-of-Chauhan

चौहान वंश की स्थापना

• चौहान वंश की स्थापना 551 ई॰ में वासुदेव चौहान ने की ।
• वासुदेव चौहान को ‘चौहानों का आदि पुरुष’ तथा ‘चौहानों का मूल पुरुष’ भी कहते हैं ।
• चौहान वंश की स्थापना सपादलक्ष (सांभर) में हुई ।
• सपादलक्ष को शाकम्भरी के नाम से जाना जाता है ।
• चौहानों की प्रारम्भिक राजधानी अहिक्षत्रपुर थी । जिसे वर्तमान में ‘नागौर’ कहते है ।
• वासुदेव ने जयपुर में ‘सांभर झील’ का निर्माण करवाया ।
• चौहानों के बारे में जानकारी बिजोलिया शिलालेख से मिलती है, जो भीलवाड़ा में है ।
• बिजोलिया शिलालेखे में चौहानों को वत्स गौत्रिय ब्राह्मण बताया गया है ।

विग्रहराज द्वितीय

• विग्रहराज द्वितीय चौहानों का प्रथम प्रतापी शासक था ।

चन्द्रराज

• चन्द्रराज की रानी आत्मप्रभा (रूद्राणी) प्रतिदिन पुष्कर झील में एक हजार दीपक भगवान शिव को जलाकर समर्पित करती थी ।
अजयराज

• अजयराज ने 1105 से 1133 तक शासन किया ।
• 1113 में अजयराज ने अजमेर नगर की स्थापना की ।
• अजयराज ने सर्वप्रथम अजमेर को अपनी राजधानी बनाई ।
• अजयराज ने 1113 में ‘अजयमेरू दुर्ग’ की स्थापना की ।
• अजयमेरू दुर्ग बीठड़ी पहाड़ी पर बना हुआ है । इस कारण इसे गढ़ ‘बीठडी दुर्ग’ कहते है ।
• कुछ इतिहासकारों के अनुसार अजयमेरू दुर्ग की मरम्मत शाहजहाँ के सामन्त बिठलदास करवायी । इस कारण इसे ‘गढ़ बीठडी दुर्ग’ कहते है ।
• मेवाड़ के राजकुमार पृथ्वीराज सिसोदिया ने अजयमेरू दुर्ग की मरम्मत करवाई और अपनी पत्नी तारा के नाम पर इस दुर्ग का नाम ‘तारागढ़’ रखा ।
• पृथ्वीराज सिसोदिया को ‘उड़ना राजकुमार’ कहते है ।
• अजयराज ने अजयदेव के नाम से चाँदी के सिक्के चलाये तथा इसकी रानी सोमलेखा ने भी चाँदी के सिक्के चलाये ।
• डॉ॰ गोपी शर्मा ने अजयराज के शासनकाल को चौहानों का निर्माणकाल कहा है ।
• अजयराज ने जीवित रहते ही अपने पुत्र अर्णोंराज को शासक बनाया ।

अर्णोंराज

• अर्णोंराज का शासनकाल 1133 से 1153 तक रहा ।
• अर्णोंराज ने 1135 में तुर्की से युद्ध किया ।
• अजमेर के तुर्कों के रक्त को साफ करने के लिए आनासागर झील का निर्माण करवाया ।
• अजमेर में वराह मन्दिर है ।
• एकमात्र विष्णु भक्त चौहान शासक अर्णोराज था ।
• अर्णोंराज की उपाधियाँ ‘महाराजाधिराज’, ‘परमेश्वर’, ‘परमभट्टारक’ है ।
• अर्णोराज के पुत्र जगदेव ने अर्णोराज की हत्या की । इस कारण जगदेव को ‘चौहानों का पितृहन्ता’ कहते है ।

विग्रहराज चतुर्थ

• विग्रहराज चतुर्थ का शासनकाल 1153 से 1163 तक रहा था ।
• विग्रहराज चतुर्थ को उपाधि ‘कविबान्धव’, ‘कटिबन्धु’ मिली ।
• विग्रहराज चतुर्थ ने संस्कृत में ‘हरिकेली’ नाटक लिखा ।
• 1153 में अजमेर में संस्कृत पाठशाला (कण्ठाभरण पाठशाला) का निर्माण करवाया ।
• कण्ठाभरण पाठशाला को कतुबपुदीन ऐबक ने तुड़वाकर 1192 में अढ़ाई दिन का ‘अढ़ाई दिन झोपड़ा’ बनवाया ।
• अढ़ाई दिन झोपड़ा को राजस्थान की प्रथम मस्जिद तथा ‘16 खम्बों का महल’ कहते है ।
• अढ़ाई दिन के झोपड़े कहने के कारण ‘अढ़ाई दिन में बनाया तथा ढ़ाई दिन का पंजाब शाह का उर्स (मेला) लगता है’ ।
• दिल्ली को सुर्वप्रथम राजधानी बनाने वाला चौहान शासक ‘विग्रहराज’ था ।
• चौहानों का सर्वाधिक विस्तार विग्रहराज के समय हुआ ।
• विग्रहराज चतुर्थ के शासन काल को ‘चौहानों का स्वर्णकाल’ कहते है ।
• किलहोर्न ने विग्रहराज चतुर्थ की तुलना कालीदास और भवभूति जैसे विद्वानों से की है ।
• विग्रहराज चतुर्थ ने टोक में बीसलपुर करवा बसाया तथा बीसलपुर बाँध का निर्माण करवाया ।
• विग्रहराज चतुर्थ के दरबारी कवि सोमदेव और नरपति थे ।
• सोमदेव ने ‘ललित विग्रहराज’ ग्रन्थ की रचना की ।
• नरपतिनाल्ह ने ‘बीसलदेव रासो’ ग्रन्थ की रचना की ।

पृथ्वीराज तृतीय

• पृथ्वीराज तृतीय ने 1177 से 1192 तक शासन किया ।
• पृथ्वीराज तृतीय के पिता ‘सोमेश्वर’ तथा माता ‘कपूरी देवी’ थी ।
• पृथ्वीराज तृतीय का जन्म 1166 में अहिल्यापाटन (गुजरात) में हुआ ।
• पृथ्वीराज तृतीय की राज्याभिषेक 1177 में हुआ ।
• पृथ्वीराज तृतीय 11 वर्ष की अवस्था में राज्याभिषेक हुआ था ।
• पृथ्वीराज तृतीय का उपाधियाँ ‘दलपुंगल (विश्व विजेता)’ तथा ‘रायपिथोरा’ मिली ।
• दिल्ली का अन्तिम हिन्दू राजपुत शासक ‘पृथ्वीराज तृतीय’ था ।
• पृथ्वीराज तृतीय ने कन्नौज के जयचन्द गढ़वाल की पुत्री ‘संयोगिता’ के साथ हुआ ।

महोबा का युद्ध

• महोबा के युद्ध 1182 में पृथ्वीराज तृतीय व चन्देल शासक परमार देव (परमादिधव) के मध्य हुआ ।
• महोबा के युद्ध में विजय पृथ्वीराज तृतीय की हुई ।

नागौर का युद्ध

• नागौर के युद्ध में 1184 में पृथ्वीराज तृतीय व भीमदेव (चालुक्य शासक) के मध्य हुआ ।
• नागौर के युद्ध में विजय पृथ्वीराज तृतीय की हुई ।

तराइन का प्रथम युद्ध

• तराइन के प्रथम युद्ध में 1191 में करनाल (हरियाणा में) पृथ्वीराज तृतीय व गजनी (अफगानिस्थान) के शासक मोहम्मद गौरी के मध्य हुआ ।
• तराइन के प्रथम युद्ध में विजय पृथ्वीराज तृतीय हुआ ।

तराइन का द्वितीय युद्ध

• तराइन के द्वितीय युद्ध में 1192 में करनाल (हरियाणा में) पृथ्वीराज तृतीय व गजनी (अफगानिस्थान) के शासक मोहम्मद गौरी के मध्य हुआ ।
• तराइन के द्वितीय युद्ध में विजय मोहम्मद गौरी हुआ ।
• तराइन का द्वितीय युद्ध में जयचन्द गढ़वाल ने मोहम्मद गौरी का साथ दिया ।
• मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज तृतीय को बंदी बनाकर गजनी ले गया, जहाँ पृथ्वीराज की छतरी बनी हुई है ।
• पृथ्वीराज ने शब्द भेदी बाण चलाकर मोहम्मद गौरी की हत्या ।
• चन्द्रवरदायी द्वारा बोला गया छंद – “चार बांस चौबिस गज अंगुल अष्ठ प्रमाण । ता ऊपर सुल्तान मत चुके है चौहान ।।”
• भारत में मुस्लिम साम्राज्य का संस्थापक मोहम्मद गौरी था ।
• भारत में मुगल साम्राज्य का संस्थापक बाबर था ।
• तराइन के दोनों युद्धों में मोहम्मद का सेनापति ‘कुतुबुदीन ऐबक’ था ।
• पृथ्वीराज चौहान के शासन में ख्वाज मोइनुदीन चिश्ती मोहम्मद गौरी के साथ अजमेर आये ।
• पृथ्वीराज चौहान के दरबारी कवि चन्द्रवरदायी और जयानक थे ।
• पृथ्वीराज अजमेर में कला साहित्य विभाग की स्थापना करवाई । इसके अध्यक्ष ‘पद्मनाभ’ को बनाया ।
• पृथ्वीराज का घोड़ा ‘नाट्य रम्भा’ था ।
• मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज के पुत्र गोविन्दराज को अजमेर का शासक 1192 से 1204 तक बनाया ।
• गोविन्दराज के चाचा हरिराज ने गोविन्दराज को हटाकर स्वयं शासक बना । बाद में कुतुबुदीन ऐवक आया और हरिराज को हटाकर स्वयं शासक बना ।

चन्द्रवरदायी

• चन्द्रवरदायी का वास्तविक नाम ‘पृथ्वीभट्ट’ था ।
• पृथ्वीराज का मित्र व दरबारी कवि चन्द्रवरदायी था ।
• चन्द्रवरदायी ने पृथ्वीराज रासो ग्रन्थ लिखा ।
• पृथ्वीराज रासो ग्रन्थ को पूरा चन्द्रवरदायी के पुत्र जल्हण ने किया ।
• तराइन के दोनों युद्धों का उल्लेख पृथ्वीराज रासो ग्रन्थ में है ।

जयानक

• जयानक ने ‘पृथ्वीराज विजय’ नामक ग्रन्थ लिखा ।

रणथम्भौर के चौहान

• रणथम्भौर में चौहान वंश की स्थापना 1194 में ‘गोविन्दराज’ ने की ।
• रणथम्भौर का प्रथम प्रतापी शासक हमीरदेव 1282 से 1301 तक रहा ।
• हमीर महाकाव्य के लेखक नयनचन्द्र सुरी थे ।
• हमीर हठ व सुर्जन चरित्र के लेखक चन्द्रशेखर थे ।
• हमीर रासो 13वीं शताब्दी लेखक शारंगधर थे ।
• हमीर रासो 18वीं शताब्दी लेखक जोधराज थे ।
• दिल्ली के शासक जलालुदीन खिलजी ने रणथम्बौर पर आक्रमण किया ।
• जब जलालुदीन खिलजी रणथम्भौर दुर्ग को जीत नहीं सका तो कहा था कि “मैं ऐसे 10 दुर्गों को मुसलमान के एक बाल के बराबर नहीं समझता” ।
• अलाऊदीन खिलजी ने 1299 में रणथम्भौर पर आक्रमण किया ।

  1. हमीर द्वारा अलाऊदीन खिलजी के विद्रोह मीर मोहम्मद शाह और केहब्रू को शरण देना ।
  2. अलाऊदीन खिलजी की साम्राज्यवादी नीति ।
  3. हमीर का कर देने से इन्कार ।
  4. अलाऊदीन खिलजी अपने चाचा की पराजय का बदला ले चाहता था ।
    • हमीर के सेनानायक रणमल और रतिपाल थे ।
    • अलाऊदीन खिलजी के सेनापति उतून खाँ और नुसरत खाँ थे ।
    • अलाऊदीन खिलजी ने रणमल और रतिपाल को दुर्ग का लालच देकर अपनी ओर मिला लिया ।
    • रणमल और रतिपाल ने अलाऊदीन खिलजी को दुर्ग में प्रवेश करने का गुप्त मार्ग बताया तथा दुर्ग के जल में गो रक्त मिलाया ।
    • हमीर अलाउदीन खिलजी के साथ युद्ध करता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ ।
    • हमीर की रानी रंगदेवी ने जुलाई 1301 में जौहर किया । यह राजस्थान का प्रथम जल जौहर था ।
    • रंगदेवी के जल जौहर को राजस्थान का प्रथम जौहर व प्रथम साका कहते है ।
    • अलाउदीन खिलजी ने रणथम्भौर पर अन्तिम विजय 11 जुलाई 1301 को प्राप्त की ।
    • अलाऊदीन खिलजी ने रणथम्भौर दुर्ग का शासक उलुग खाँ को बनाया ।
    • इस युद्ध अभियान के दौरान अलाउदीन खिलजी के साथ अमीर खुसरो विद्वान उपस्थित था ।
    • हमीर ने अपने जीवन में 17 युद्ध किये, जिसमें से 16 में विजय हुआ ।
    • हमीर ने नोकोटीजन्य यज्ञ का आयोजन करवाया ।
    • अलाऊदीन खिलजी ने रणमल और रतिपाल की हत्या करवा दी ।
    • अलाऊदीन खिलजी ने मोहम्मद शाह को हाथी के पैर के नीचे कुचलवा दिया ।
    • रणथम्भौर दुर्ग के बारे में कहावत
  5. अमीर खुसरों ने रणथम्भीर दुर्ग के बारे में कहा कि “आज कुफ्र का गढ़ इस्लाम का घर हो गया ।
  6. तिरिया तेल हमीर हठ चढे न दुजी बार

जालौर के चौहान

• किर्तिपाल ने 1182 में जालौर में चौहान वंश की स्थापना की ।
• मुहणौत नैणसी किर्तिपाल को किन्तु एक महान राजा की उपाधी दी ।
• जालौर का सबसे प्रतापी शासक कान्हडदेव था ।
• जालौर का प्राचीन जाबालीपुर था ।
• जालौर के चौहान के बारे में

  1. कान्हदेवप्रबन्धक के लेखक पद्मनाभ थे ।
  2. तारीख-ए-फरीसता के लेखक फरीसता था ।
  3. नैणसी री ख्यात के लेखक मुहणौत नैणसी थे ।
  4. खजाइन-उल-फुतुह के लेखक अमीर खुसरो थे ।
    • अलाऊदीन खिलजी की पुत्री फिरोजा कान्हदेव के पुत्र वीरमदेव से प्रेम करती थी ।
    • अलाउदीन खिलजी ने जालौर दुर्ग जितने से पहले सीवाणा दुर्ग (बाड़मेर) जीता ।
    • अलाउदीन खिलजी ने 1308 में सीवाणा दुर्ग पर आक्रमण किया । उस समय सिवाणा का शासक शीतलदेव था ।
    • जब अलाउदीन खिलजी सीवानी दुर्ग को जीत नहीं सका तो उसने छल – कपट से शीतलदेव के सेनापति बावला को दुर्ग का लालच देकर अपनी ओर मिला लिया ।
    • बावला ने सीवाणा दुर्ग के जल कण्ड में गौ रक्त मिला दिया ।
    • शीतलदेव आलाऊदीन खिलजी के साथ युद्ध करता हुआ मारा गया ।
    • आलाऊदीन खिलजी ने सीवाणा दुर्ग का नाम बदलकर खेराबाद रखा ।
    • अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़दुर्ग का नाम बदलकर खिज्राबाद रखा ।
    • अलाउदीन खिलजी ने सीवाणा दुर्ग का शासक अपने सेनापति कमालुदीन गुर्ग को बनाया ।
    • शीतलदेव की रानी मैणा के ने नेतृत्व में 1308 में सिवाणा दुर्ग का प्रथम जौहर हुआ ।
    • अलाउदीन खिलजी ने सिवाणा दुर्ग जीतने के पश्चात् 1311-12 में जालौर दुर्ग पर आक्रमण किया ।
    • कान्हड़देव के सेनापति दहिया सरदार बीका ने अलाउदीन खिलजी को दुर्ग में प्रवेश करने का गुप्त मार्ग बताया ।
    • अलाउद्दीन खिलजी ने जालौर दुर्ग का नाम बदलकर जलालाबाद रखा ।
    • इस युद्ध के पश्चात् अलाऊदीन खिलजी ने जालौर में अलाई दरवाजे नामक मस्जिद का निर्माण करवाया, जिसे तोप मस्जिद भी कहते हैं ।
    • जालौर दुर्ग के बारे में कहावत
  5. राई रो भाव राता में बित्यो
  6. हसन निजामी ने कहा है कि “जालौर दुर्ग का दरवाजा कोई भी आक्रमणकारी नहीं खोल सका” ।
    • कान्हड़देव के परिवार का एकमात्र जीवित सदस्य मालदेव चौहान बचा था ।

नाडोल के चौहान

• नाडोल के चौहान पाली में है ।
• पाली में चौहान वंश की स्थापना लक्ष्मण चौहान ने 960 ई॰ में की ।
• राजस्थान में स्थापित प्रथम चौहान शाखा नाडोल थी जालौर के शासक उदयसिंह ने 1205 मे नाडोल को जालौर में मिला लिया ।

सिरोही के चौहान

• सिरोही के चौहानों की देवडा शाखा है ।
• सिरोही के चौहान वंश की स्थापना 1311 ई॰ में लुम्बा ने की ।
• सिरोही के चौहानों की प्रथम राजधानी चन्द्रावती थी ।
• कर्नल जेम्स टॉड ने सिरोही का मूल नाम शिवपुरी बताया है ।
• सिरोही के शासक अखैराज देवड़ा प्रथम में खानवा के युद्ध में 1527 में राणा सांगा के साथ दिया ।
• सिरोही अन्तिम रियासत थी, जिसने ईस्ट इण्डिया कम्पनी से संधि की ।
• सिरोही के संधि की शिवसिंह ने 11 सितम्बर 1823 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी से संधि की ।
• ईस्ट इण्डिया कम्पनी से संधि करने वाली प्रथम रियासत करौली थी ।
• करौली के शासक हरवक्षपाल ने 15 नवम्बर 1817 को ईस्ट इण्डिया कम्पनी से संधि की ।
• ईस्ट इण्डिया कम्पनी से संधि करने वाली दूसरी रियासत कोटा थी ।
• कोटा के शासक जालिमसिंह ने 26 नवम्बर 1817 को ईस्ट इण्डिया कम्पनी से संधि की ।

हाड़ौती के चौहान

• हाड़ौती चौहानों की हाड़ा शाखा थी ।
• हाड़ौती मे चौहान वंश की स्थापना देवीसिंह ने 1241 में की ।
• पहले सम्पूर्ण ती हाड़ौती ही बूंदी कहलाता था ।
• वर्तमान में हाड़ौती के चार जिले कोटा, बूंदी, बारां और झालावाड़ है ।
• हाड़ौती राजस्थान के दक्षिणी-पूर्वी भाग में स्थित है ।

बूंदी के चौहान

• बूंदी में चौहान वंश की स्थापना 1241 में दवीसिंह ने बूंदा मीणा को हराकर की ।
• जैत्रसिंह

  1. जैनसिह ने 1274 में कोटिया भील को हराकर कोटा को बूंदी में मिलाया ।
  2. कोटिया भील का सम्बन्ध कोटा से है ।
    • हामू जी / हम्मीर
  3. हम्मीर के शासन काल में मेवाड़ के शासक राणा लाखा ने बूंदी के तारागढ़ दुर्ग पर आक्रमण किया लेकिन हार गया ।
  4. राणा लाखा ने प्रतिक्षा की जब तक अन्नजल ग्रहण नहीं करूँगा जब तक बूंदी के तारागढ़ दुर्ग को मिट्टी में ना मिला दूँ ।
  5. राणा लाखा ने बूंदी के तारागढ़ के प्रतिक रूप में मिट्टी का तारागढ़ दुर्ग बनाकर जिता ।
  6. इस मिट्टी के तारागढ़ दुर्ग की रक्षा कुम्भा हाड़ा ने की और वीरगति को प्राप्त हुआ ।
    • बरसिंह
  7. बरसिंह ने बूंदी के वर्तमान तारागढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया ।
    • नारायण दास
  8. नारायण दास ने राणा सांगा की ओर से खानवा के युद्ध में भाग लिया ।
    • सुर्जन सिंह
  9. सुर्जन सिंह दानशीलता के लिए प्रसिद्ध था ।
  10. सुर्जन सिंह ने 1570 में नागौर दरबार में अकबर की अधिनता स्वीकार की ।
  11. सुर्जन सिंह का दरबारी कवि चन्द्रशेखर ग्रन्थ सुर्जन चरित्र व हमीर हठ लिखा ।
    • राव रतनसिंह
  12. राव रतनसिंह मुगल बादशाह जहाँगीर ने राव रतनसिंह को राम राज तथा सर बुन्द राय की उपाधि दी ।
  13. शाहजहाँ ने राव रतन सिंह के शासन काल में 1631 में कोटा को बूंदी से अलग किया और रतन सिंह के ही पुत्र माधोसिंह को कोटा का प्रथम शासक बनाया ।
    • बुद्धि सिंह
  14. मुगल बादशाह फर्रुखशियर ने बुद्धि सिंह को जयपुर के शासक सवाई जयसिंह पर आक्रमण करने के लिए भेजा लेकिन नहीं गया ।
  15. इस कारण फर्रुखशियर ने बूंदी छीनकर बूंदी का नाम फर्रुखाबाद रखा ।
  16. बुद्धि सिंह की रानी अमर कंवरी (आनन्दवरी कंवरी) ने अपने पुत्र उम्मेद सिंह को शासक बनाने राजस्थान में मराठाओं को आमंत्रित किया ।
  17. अमर कंवरी ने मराठा सरदार होल्कर और राणा जी को राखी बान्धी ।
  18. रानी कर्मावती ने हुमायूँ को राखी भेजी थी ।
  19. राजस्थान में सबसे पहले मराठाओं का प्रवेश बूंदी में हुआ ।
  20. जैसलमेर और बीकानेर पर मराठाओं का आकरण नहीं हुआ ।
  21. भगठाशी को राजस्थान का सरसो जयसिंह जय बनाकर किय
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उम्मेदसिंह

उम्मेदसिंह का अन्तिम संस्कार स्वर्ग प्रतिमा बनाकर किया ।

विष्णु सिंह

विष्णु सिंह 1818 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी से संधि की ।

बहादूर सिंह

बहादूर सिंह बूंदी का अन्तिम शासक था ।

कोटा के चौहान

• जैत्रसिंह ने 1274 में कोटिया भील को हराकर कोटा को बुँदी में मिलाया, इस का जैसिंह को ‘कोटा का संथापक’ कहते है ।
• कोटा का प्रथम शासक राव माधोसिंह था ।
• माधोसिंह को कोटा का वास्तविक संस्थापक कहते है ।
• राव मुकुन्द सिंह

  1. राव मुकुन्द सिंह ने कोटा में अबली मीणी के महल का निर्माण करवाया ।
  2. अबली मीणी के महल को ‘राजस्थान का दूसरा ताजमहल’ कहते है ।
  3. राजस्थान का प्रथम ताजमहल जसवंत थड़ा (जोधपुर) को कहते हैं ।
  4. शाहजहाँ को ताजमहल बनाने की प्रेरणा पिछोला झील (उदयपुर) में स्थित जगमन्दिर से मिली थी ।
  5. ताजमहल को पुर्वगामी हुमायूँ के मकबरे (दिल्ली) को कहते है ।
  6. आगरा में ताजमहल का निर्माण शाहजहाँ ने मुमताज की याद में करवाया ।
    • जगतसिंह
  7. रामसिंह प्रथम ने सर्वप्रथम कोटा में कन्या वध पर रोक लगाने का प्रयास किया ।
    • रामसिंह प्रथम
  8. रामसिंह प्रथम को भड़भूज्या कहते है ।
    • भीमसिंह प्रथम
  9. भीमसिंह प्रथम ने अपना नाम कृष्णदास तथा कोटा का नाम नन्दग्राम रखा ।
    • जालिमसिंह
  10. जालिमसिंह 1817 में ईस्ट इंडिया कम्पनी से संधि की ।
  11. जालिमसिंह को कोटा का ‘वीर दुर्गादास’ कहते है ।
    • रामसिंह द्वितीय
  12. रामसिंह द्वितीय 1857 की के समय कोटा का शासक था ।
    • भीमसिंह द्वितीय
  13. भीमसिंह द्वितीय कोटा का अन्तिम शासक था ।
  14. भीमसिंह द्वितीय को पूर्वी राजस्थान संघ का राजप्रमुख बनाया गया था ।

झालावाड़ के चौहान

• 1838 में अंग्रेजों (यूरोपियों) ने झालावाड़ रियासत की स्थापना की ।
• अंग्रेजों द्वारा बनाई गई एकमात्र रियासत थी ।
• झालावाड़ रियासत की प्रथम राजधानी झालारापाटन है ।
• झालावाड़ रियासत का प्रथम शासक मदनसिंह था ।
• राजेन्द्र सिंह

  1. राजेन्द्र सिंह को समाज सुधारक कहते है ।
  2. राजेन्द्र सिंह ने झालावाड़ में काष्ठ का रेन बसेरा बनाया ।
    • हरिशचन्द्र बहादुर
  3. हरिशचन्द्र बहादुर: – झालावाड़ का अन्तिम शासक था ।

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